बुधवार, 19 अगस्त 2020

नहीं चाहिए शांति किसी को [ गीत ]

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✍ शब्दकार ©

🌳 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'

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नहीं चाहिए शांति किसी को,

देखे           लाख      हज़ार।

कोई   चाहे     सोना -  चाँदी,

महल  -      दुमहले    चार।।


मंदिर    में    जा   बेटा  माँगे,

धन     की    गठरी     भारी।

वांछित  उसे   नौकरी अच्छी,

सुंदर    तन     की     नारी।।

भक्ति नहीं  माँगी  प्रभुजी से,

माँगे             धन   -  भंडार।

नहीं चाहिए शांति किसी को,

देखे     लाख   -       हजार।।


सेवा  नहीं   पिता  की करता,

माँ   से       नेह    नहीं    है।

गुरु से आँख बचाकर निकले,

उसको    नरक     यहीं    है।।

फूटी   कौड़ी    दान न करता,

चाहे        स्वर्ण         अपार।

नहीं चाहिए शांति किसी को,

देखे   लाख    -       हज़ार।।


जीवों    की   हिंसा करता है ,

रोचक   माँसाहार        लगे।

बना   विभीषण जो सोदर का, 

बने    विधर्मी     सभी  सगे।।

प्रतिमा  तोड़ चर्च को धाया,

बना           धर्म  -     गद्दार।

नहीं चाहिए शांति किसी को,

देखे        लाख  -    हज़ार।।


जीवन   में उपकार किसी का,

करना   कभी     नहीं  आया।

निज शेखी ताकत है जिसकी,

बात -   बात   में   गरमाया।।

मानव-देह वृथा उस नर की,

जीवन      है     यह    क्षार।

नहीं चाहिए शांति किसी को,

देखे      लाख  -      हजार।।


अन्य जाति का अन्न न खाए,

नहीं     पिए       वह   पानी।

निकला    मुर्गी   के  पीछे से ,

खा      जाए     नर   प्रानी।।

पत्नी   का    सम्मान नहीं है ,

वेश्या     के     घर      प्यार।

नहीं चाहिए शांति किसी को,

देखे       लाख  -    हज़ार।।


जाति -पाँति से सना हुआ है,

वसन         बगबगे      धारे।

माला - कंठी    दिखा रहा है ,

ज्यों     नर    कीड़े     सारे।।

सुरा-   सुंदरी   के आँचल में,

मिलती       शांति     अपार।

नहीं चाहिए शांति किसी को,

देखे      लाख     -   हज़ार।।


देशभक्ति   का  ओढ़ लबादा,

ठगता       करे       दलाली।

अंधभक्त    नेता   का बनता,

धन    की     शोभा  काली।।

'शुभम'   ढोंग  में ढोंगी रमते,

कहता        हूँ       धिक्कार।

नहीं चाहिए शांति किसी को,

देखे   लाख   -       हज़ार।।


💐 शुभमस्तु !


19.08.2020◆6.15 अप.

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