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✍ शब्दकार ©
🌳 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'
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नहीं चाहिए शांति किसी को,
देखे लाख हज़ार।
कोई चाहे सोना - चाँदी,
महल - दुमहले चार।।
मंदिर में जा बेटा माँगे,
धन की गठरी भारी।
वांछित उसे नौकरी अच्छी,
सुंदर तन की नारी।।
भक्ति नहीं माँगी प्रभुजी से,
माँगे धन - भंडार।
नहीं चाहिए शांति किसी को,
देखे लाख - हजार।।
सेवा नहीं पिता की करता,
माँ से नेह नहीं है।
गुरु से आँख बचाकर निकले,
उसको नरक यहीं है।।
फूटी कौड़ी दान न करता,
चाहे स्वर्ण अपार।
नहीं चाहिए शांति किसी को,
देखे लाख - हज़ार।।
जीवों की हिंसा करता है ,
रोचक माँसाहार लगे।
बना विभीषण जो सोदर का,
बने विधर्मी सभी सगे।।
प्रतिमा तोड़ चर्च को धाया,
बना धर्म - गद्दार।
नहीं चाहिए शांति किसी को,
देखे लाख - हज़ार।।
जीवन में उपकार किसी का,
करना कभी नहीं आया।
निज शेखी ताकत है जिसकी,
बात - बात में गरमाया।।
मानव-देह वृथा उस नर की,
जीवन है यह क्षार।
नहीं चाहिए शांति किसी को,
देखे लाख - हजार।।
अन्य जाति का अन्न न खाए,
नहीं पिए वह पानी।
निकला मुर्गी के पीछे से ,
खा जाए नर प्रानी।।
पत्नी का सम्मान नहीं है ,
वेश्या के घर प्यार।
नहीं चाहिए शांति किसी को,
देखे लाख - हज़ार।।
जाति -पाँति से सना हुआ है,
वसन बगबगे धारे।
माला - कंठी दिखा रहा है ,
ज्यों नर कीड़े सारे।।
सुरा- सुंदरी के आँचल में,
मिलती शांति अपार।
नहीं चाहिए शांति किसी को,
देखे लाख - हज़ार।।
देशभक्ति का ओढ़ लबादा,
ठगता करे दलाली।
अंधभक्त नेता का बनता,
धन की शोभा काली।।
'शुभम' ढोंग में ढोंगी रमते,
कहता हूँ धिक्कार।
नहीं चाहिए शांति किसी को,
देखे लाख - हज़ार।।
💐 शुभमस्तु !
19.08.2020◆6.15 अप.
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