रविवार, 23 अगस्त 2020

अँगूठी [ दोहा ]

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✍ शब्दकार©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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नाम अँगूठी रख दिया,रहा अँगूठा दूर।

अँगुली के सँग में रहूँ, दिखलाती मैं नूर।।


नहीं अँगूठा चाहता, फिर भी उसका नाम।

मुझे अँगूठी कह रहे,लोग करें बदनाम।।


प्यार मुझे अँगुली करें,मेरी प्यारी आठ।

अंदर ही घुसकर रहें ,ग्रह-मंत्रों के   पाठ।।


सोने  चाँदी    में गढ़ी, हीरा पन्ना   लाल।

नीलम या  पुखराज से,मुद्रा हुई निहाल। 


मुद्रा,  रिंग,अँगूठियाँ,रखे अनौखे  नाम।

ज्योतिष-भाषा कह रही,बड़े -बड़े हैं काम।।


मात्र प्रदर्शन के लिए, धारण करते लोग।

सच्ची  मुद्रा  यदि  रहे,  दूर भगाए रोग।।


काँच  नहीं  धारण  करो,नहीं करेगा   लाभ।

मुद्रा असली चाहिए,अति गुणकारी आभ।।


तिलक  लगाने के लिए,बचे अँगूठा राम।

नहीं  अँगूठी  ले सके, मुक्के का आराम।।


दो  हाथों  में मात्र  ये,दो अंगुष्ठ ललाम।

अँगुली की जड़ में बसे,करते अपने काम।।


नहीं अँगूठी का मिला, थोड़ा-सा भी प्यार।

आठों अँगुली  मोहतीं,  मुद्रा का आचार।।


'शुभम'अँगूठी प्यार की,होती शुभ पहचान।

प्रेमी पहनाते इसे,अमर-प्रेम की शान।।


💐 शुभमस्तु !


23.08.2020 ◆9.15अप.

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