259/2023
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
● ©शब्दकार
● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
रक्त चूसते नित्य,गिद्ध जौंक मच्छर सभी।
कैसा ये औचित्य,रक्तदान उनको करें!!
होता दानव एक,रक्त ग्रहण का पात्र क्या?
रक्तदान क्या नेक,जो कृतज्ञ होता नहीं।।
देखें प्रथम सुपात्र, देना कोई दान हो।
जो पाए हर गात्र,रक्तदान खैरात क्या??
दान वहाँ है पाप, जिनका दूषित रक्त है।
तुम्हें लगेगा शाप,रक्तदान करना नहीं।।
अरि मानव के नीच,दुश्मन हैं जो देश के।
फेंक दिया ज्यों कीच,रक्तदान वह व्यर्थ है।।
चूस रहे जो रक्त, रक्तदान कैसे करें।
बनें देश के भक्त, पल-पल बदलें रक्त वे।।
मानव आज महान,ऊँच-नीच का भेद है।
त्याग भेद का भान,रक्तदान लें प्रेम से।।
कहते जिनको नीच, परछाईं से द्वेष है।
बचा रहे निज मीच,रक्तदान स्वीकार कर।।
करते जिनका त्राण, रक्तदान सबसे बड़ा।
बचा रही जो प्राण,सेवा यही महान है।।
उसे न करना दान, जो अबला को लूटता।
काटें नाकें कान,रक्तदान अघ है वहाँ।।
करें रक्त का दान,उनको क्यों हम प्राण दें।
मिटा देश की शान,हनन करें नर -नारि का।।
●शुभमस्तु !
15.06.2023◆12 .45पा०मा०
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें