बुधवार, 7 जून 2023

रो रहे हैं ठूँठ! ● [ गीत ]

 242/2023

     

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●शब्दकार©

● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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पाँव में अपने

कुल्हाड़ी मारकर

कब तक बचोगे?


पाखियों के नीड़

उजड़े कट गए तरु।

रो रहे हैं ठूँठ

धरती हो गई मरु।।


आत्महंता बन

जीना न तुमको 

क्या कुछ रचोगे?


क्यों उठेंगे घन

पावस में धरा।

चीखते चिल्ला रहे

हाय ! मैं तो मरा।।


पौध रोपोगे

नहीं, मूढ़ मानव

आतप तचोगे?


छाँव में बैठे

पखेरू भैंस गायें।

आसरा उनका

छिना, वे तड़पड़ायें।।


उतर जाएँगे

तुम्हारे आवरण

बहुरंग चोले।


●शुभमस्तु !


06.06.2023◆11.45आ०मा०

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