गुरुवार, 1 जून 2023

दीवारों के कान! ● [ बाल कविता ]

 235/2023

 

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● शब्दकार ©

● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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दीवारों   के   कान  कहाँ  हैं।

बतलाएँ वे   लगे  जहाँ   हैं??


बहुत सुनी   है   हमने   चर्चा।

भले  किसी को लगती मिर्चा।


कहते  सब    दीवारें   सुनतीं।

गल्प -कथाएँ भी वे   बुनतीं।।


मन में जागी    है   जिज्ञासा।

लेतीं  क्या    दीवारें   श्वासा।।


कान न   दीवारों   के    देखे।

क्यों कपोल सजते अभिलेखे


गुपचुप घुसर-पुसर की बातें।

करतीं कान-कान मुख घातें।।


दीवारों   के   नाम    लगाते।

इधर-उधर  चर्चा   टरकाते।।


अपना  दोष  और पर डालें।

दीवारों पर चाड़  निकालें।।


झूठी  बात कान की करते।

कानों  में  घुस बातें भरते।।


लिए  कहावत   झूठ कहानी।

पड़ी 'शुभम्' को सत्य बतानी।।


●शुभमस्तु !


01.06.2023◆2.00प०मा०

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