शुक्रवार, 16 जून 2023

रहस्य ● [ अतुकान्तिका ]

 260/2023

           

●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●

● © शब्दकार 

● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●

सदा से ही

रहस्य रही प्रकृति

नियंता उसका,

कौन जाने

वह क्या कुछ

रहा रचता!


प्रति क्षण

ध्वंश एवं सृजन,

कभी  वह्नि

 कभी यजन,

कभी ग्रहण

कभी त्यजन।


सृष्टि का निरंतर शृंगार,

छीनता कभी

देता उपहार,

नहीं  राग न द्वेष,

मानव मात्र

बस मेष।


प्रकति का

लघु कण

यह मानव!

बनी हुई लकीर

पर चलता हुआ रव।


कभी नहीं

होता अभिनव,

'मा' अर्थात 'नहीं'

'नव' ही 'नवीन',

अक्षर बस तीन।

 

नहीं जाना

नया पहचाना,

मारता 'शुभम्' ताना ,

सब कुछ पुराना,

  धर अहं का बाना।


●शुभमस्तु !


16.06.2023◆6.15 आ०मा०

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...