257/2023
[धार,लहर, प्रवाह,भँवर, कूल]
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● © शब्दकार
● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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● सब में एक ●
जीवन की जल- धार के,जन्म मृत्यु दो छोर।
उधर अस्त हो भानु ज्यों,इधर सुहाना भोर।।
बहे धार में देह मृत, जैसा चले प्रवाह।
जीवित बढ़ते चीरकर, बना नई वे राह।।
गिरती - उठती लहर है, मानव जीवन मीत।
प्रवहमान रहती सदा,कर कलकल संगीत।।
सर,सरिता,सागर सभी, लहर उठें हर ओर।
क्षमता सबकी अलग है,मौन कहीं बहु रोर।।
सरि- प्रवाह की सीख है,चलने का ही नाम।
जीवन है ये जान लें,चलना है अविराम।।
जल - प्रवाह की राह में, बाधाएँ गंभीर।
आती हैं दिन-रात ही,रुकें न भय से वीर।।
जीवन-नौका भँवर में,सबकी फँसती मीत।
जो जूझा जय ही मिली,बढ़ता राह अभीत।।
घबराना मत भँवर में, लें जीवट से काम।
करना है संघर्ष नित, पा जाए शुभ धाम।।
बैठा है जो कूल पर,मिले न मुक्ता एक।
पाता है वह लक्ष्य को,करता जल-अभिषेक।।
पैठे बिना न सिंधु के,मोती का क्या काम!
कूल बैठ क्या पा सके,बैठे मिले न धाम।।
● एक में सब ●
जल - प्रवाह की धार में,
उठतीं लहर अनेक।
बैठ कूल के द्वार पर,
देख भँवर अतिरेक।।
●शुभमस्तु !
13.06.2023◆11.00प०मा०
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