250/2023
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●शब्दकार ©
● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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-1
चेतन मन जब सुप्त हो,अवचेतन का खेल।
सपना बन साकार हो,दृश्य जगत से मेल।।
दृश्य जगत से मेल,करे बहुरंगी क्रीड़ा।
कभी हर्ष या क्रोध, रुदन क्रंदन या व्रीड़ा।।
'शुभम्'अवस्था तीन,जागरण सपना केतन।
फहराता है जीव, सुषुप्तावस्था चेतन ।।
-2-
सपना मन की वासना,जो न हुई साकार।
सपने में नव रूप में,खोज रही आधार।।
खोज रही आधार ,विकल करने को पूरी।
कैसे ले आकार, रही जो सदा अधूरी।।
'शुभम्' माँगता स्वेद,बुद्धि श्रम हो जो अपना।
करें सुदृढ़ जो काम ,न देखे थोथा सपना।।
-3-
संभव का चिंतन करे,मन में सुदृढ़ विचार।
बोले वचनों से नहीं, कर्मों में साकार।।
कर्मों में साकार , न देखे कोरा सपना।
फल पाने से पूर्व, पड़ेगा सश्रम तपना।।
'शुभम्' सोच हो श्रेष्ठ,कर्म कर हे मानव नव।
कारण एक न शेष,नहीं जो होता संभव।।
-4-
देखा सपना देश ने, होना है स्वाधीन।
रक्त बहा हिंसा हुई, तड़पे थे ज्यों मीन।।
तड़पे थे ज्यों मीन, देश के भक्त निराले।
वीर व्रती रणधीर, झेलते कड़े कसाले।।
'शुभम्' बना इतिहास,कनक अक्षर में लेखा।
होते अमर अनाम, जिन्होंने सपना देखा।।
-5-
सपना झूठा देखकर, राजा बने न रंक।
कर्म बिना कारण नहीं,धर यह तथ्य निशंक।।
धर यह तथ्य निशंक, कर्म ही नित फलता है।
पाता वह गंतव्य, अहर्निश जो चलता है।।
'शुभम्'सत्य यह बात, यहाँ क्या कोई अपना?
तन-मन का विश्वास, सत्य करता है सपना।।
● शुभमस्तु !
09.06.2023◆1.30 प०मा०
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