273/2023
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●© शब्दकार
● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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बचपन विदा मिली तरुणाई।
सावन को बयार पुरवाई।।
खेल - खिलौने छोड़े सारे।
लगे चमकने दृग में तारे।।
आँखों में छाई हरियाली।
फूली तन की डाली - डाली।।
तरुणाई के खेल निराले।
भाग्यवान के खुलते ताले।।
खेल अनौखे तरुणाई के।
दिखा रहा है निपुनाई के।।
काम-कामिनी में जा डूबा।
नहीं एक पल मानव ऊबा।।
क्या नारी क्या नर - तरुणाई।
ज्यों कलगी पर बाली आई।।
महक उठे तन - मन भी सारे।
लगते संतति उसको प्यारे।।
तरुणाई के मद में भूला।
देह और मन दिखता फूला।।
आँधी से जाकर टकराता।
तूफानों के गीत सुनाता।।
सरिता की धारा को उलटे।
नहीं लक्ष्य से पीछे पलटे।।
सैनिक बनकर देश बचाता।
तरुण वही सच्चा कहलाता।।
'शुभम्' नहीं खोएँ तरुणाई।
युग ने यौवन- महिमा गाई।।
थिरता नहीं जगत में कोई।
मुरझाती हर माला पोई।।
●शुभमस्तु !
26.06.2023◆4.00आ०मा०
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