269/2023
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●©शब्दकार
● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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मिले एक से एक जो, कहलाता है योग।
शक्ति एकता की बढ़े,कहते हैं सब लोग।।
अंग - अंग गतिशीलता, करती देह निरोग।
जड़ता को तज कीजिए,मित्रो नित्य सु-योग।।
एक दिवस के योग से,मिले न इतना लाभ।
नित्य नियम से जो करे,बढ़ती उसकी आभ।।
पशु - पक्षी करते सभी,नित्य नियम से योग।
वे औषधि लेते नहीं,रहते सदा निरोग।।
योग: कर्मसु कौशलम, यही मर्म है मीत।
तन-मन में दें संतुलन,चलें नहीं विपरीत।।
शब्द - भाव के योग से,रचता है कवि छंद।
कविता में रस-स्रवण कर,बाँट रहा मकरंद।।
योग नहीं बस देह का,प्राणों का आयाम।
कुंभक रेचक कीजिए, वेला ब्रह्म प्रणाम।।
स्वस्थ देह में स्वस्थ धी,करती सदा निवास।
योग-साधना जो करे,करके सफल प्रयास।।
योग नहीं है आज से,भूलें नहीं अतीत।
योगेश्वर श्रीकृष्ण से,चलें नहीं विपरीत।।
पातंजलि ऋषि ने किया,जन-जन योग प्रसार।
देह योग से ढालिए, कभी न होगी हार।।
सत्कर्मों के योग का,सदा सुफल है मीत।
संतति चले सुमार्ग में,गाती यश के गीत।।
●शुभमस्तु !
21.06.2023◆11.45आ०मा०
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