गुरुवार, 1 जून 2023

कवि कहलाओगे ● [अगीत ]

 234/2023

    

●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●

●शब्दकार ©

● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●


कुछ  भी लिख,

कैसा भी लिख,

तुकांत या अतुकांत,

भाव उद्भ्रांत,

कवि कहलाओगे।


वर्तनी न छंद,

धी-पात्र  बंद,

भले    निर्बंध,

कैसी भी गंध,

कवि कहलाओगे।


अपनी   ही   ठान,

किसी की न मान,

बंद  आँख   कान,

छेड़  भिन्न   तान,

कवि कहलाओगे।


कोई  कहे पद्य,

कोई  कहे गद्य,

सामिष हो मद्य,

रहेगा   अबध्य,

कवि कहलाओगे।


कवियों की बारात,

समझे   नहीं  बात,

शब्दों के   आघात,

समीक्षक    थर्रात,

कवि कहलाओगे।


भूल जा कबीर,

खुली   तकदीर,

तुलसी न   सूर,

अपने   में   चूर,

कवि कहलाओगे।


मात्रा    न   वर्ण,

तीरंदाज    कर्ण,

कोयलों में स्वर्ण,

बढ़ा   तो   चरण,

कवि कहलाओगे।


उलटी   है  चाल,

शारदा    बेहाल,

केशव   निढाल,

तेरी बस   ताल,

कवि कहलाओगे।


कुछ भी लिख डाल,

करेगा         कमाल,

तू     ही    बेमिसाल,

हो एक  शब्द- जाल,

कवि    कहलाओगे।


बने  स्वयँ  कविराय,

 ये  कुंडलिया भाय,

अहं    के    स्वभाव,

देते मुच्छ निज ताव,

कवि    कहलाओगे।


'शुभम्' हँसे   या रोए,

देख      दृश्य    खोए,

कैसे बीज आज बोए,

रसहीन  ऊख   छोए,

कवि कहलाओगे।


●शुभमस्तु !


01.06.2023◆ 1.00प०मा०


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...