267/2023
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©व्यंग्यकार
● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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जीव और जीभ :इन दोनों की राशि नाम और उच्चारण में बहुत बड़ा साम्य है।जल, थल और आकाश में चौरासी लाख यौनियों के जीवों की अपार भरमार है।इनमें से जंतु कहलाए जाने वालों के मुखों में एक- एक अदद जीभ भी होती है।जंतुओं की विविध प्रजातियों में एक जंतु मनुष्य भी है।इसके मुँह में प्रत्यक्षतः एक ही जीभ दिखाई देती है। नाग - नागिन की तरह भीतर से एक और बाहर से दो जीभें नहीं दिखाई देतीं।
मनुष्य की एक जीभ भी बड़ी चमत्कारी है।कभी- कभी तो एक ही पूरे परिवार पर भारी है। किसी - किसी जीभ ने तो मोहल्ले - पड़ौस की दुनिया भी तारी है।किंतु दिन- रात चलते-चलते वह आज तक नहीं हारी है। मनुष्य की जीभ के बहुरूपिये रूप और कार्यों पर यदि विचार किया जाए तो एक महाग्रंथ ही तैयार हो जाए।यद्यपि इस जीभ में कोई हड्डी या कारटीलेज आदि कठोर तत्त्व नहीं है।फिर भी कभी -कभी यह वज्र से भी कठोर होकर आघात करती है कि महाभारत होने में देर नहीं लगती।प्रत्यक्षत:यह एक ही दिखाई देती है , किन्तु यही एक जीभ मनुष्य को बहु जिह्वी बनाती है। इसके अच्छे औऱ बुरे कार्यों की सूची इतनी छोटी भी नहीं है।षटरसों का स्वाद लेने से लेकर यह तेज तलवार, खंजर और बंदूक की गोली से भी अधिक प्रहारक मार करती है।वह भी यही जीभ है जो फूल बरसाती है तो ऐसा लगता है कि इधर से पुष्पवर्षा होती रहे और उनकी कोमलता और सुंगन्ध का आनंद लेते हुए इसी की छत्रछाया में बैठे रहें।
अपनी बेटी के लिए प्रत्येक माँ की जीभ से फूल ही बरसते हैं।किंतु वही जीभ अपनी पुत्रवधू के ऊपर ईंट, पत्थर, काँटे,धूल,कीचड़ क्या कुछ नहीं बरसाती। उसकी बदली हुई दृष्टि उसकी जीभ के माध्यम से उसके ऊपर वज्राघात करने में कभी नहीं चूकती। यदि नारियों के मुख में एक ही जीभ होती तो कुरुक्षेत्र के मैदान में महाभारत नहीं होता। नहीं सीता और राम को बारह वर्ष का वनवास होता और न आदिकाल से घर -घर के आँगन में महाभारतों के लघु संस्करणों की पुनरावृत्ति होती।
यद्यपि नारी को देवी स्वरूपा मानते हुए पूजा जाता है।यदि नारी देवी स्वरूपा है ,तो क्या उसकी जीभ के कारण अथवा किसी अन्य कारण से?यह एक द्विविधाग्रस्त प्रश्न है।'भय बिनु होय न प्रीति ' के अनुसार भी हो सकता है कि उसके विशेष जिह्वा गुण के कारण इतना महत्व दिया गया हो।यदि उसे देवी स्वरूपा नहीं माना जायेगा तो घर का चूल्हा भी नहीं जलेगा।अंततः पुरुष को नारी से अनेक उल्लू भी तो सिद्ध करने हैं।इसलिए उसकी आरती उतारना घाटे का सौदा नहीं है।
नारी को प्रसन्न रखने के लिए पुरुष वर्ग द्वारा अनेक उपचार किये जाते रहे हैं। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि प्रकृति ने भी उनमें आभूषण प्रेम औऱ सजने - सँवरने का विशेष लोभाकर्षण कूट -कूट कर भर दिया है।चाहे वह निपट गँवार ग्राम्य बाला हो अथवा पी एच०डी० या एम०बी०बी०एस० धारी प्रबुद्घ नारी हो। जज, वकील इंजीनियर या किसी राज्य या केंद्र की कैबिनेट मंत्री ही क्यों न हो, आभूषण प्रेम के नाम पर इन सबकी रचना एक ही तत्व से हुई है। नारी के जीभ रूपी अस्त्र से बचने के लिए उसमें मार्केटिंग,वाणी - मांजुल्य ,पोषण भाव,नेत्र -चमत्कार जैसे अनेक विशेष तत्त्व समाहित किए गए हैं।मानव की जीभ का बहुरूपियापन न जाने कितने गुल खिला सकता है। कोई नहीं जानता।
पल में माशा पल में तोला वाली कहावत इस ढाई इंच की जिह्वा पर सटीक खरी उतरती है। इसे पलटने में भी देर नहीं लगती।तभी तो किसी कवि ने कहा है कि 'जीभ स्वर्ग ले जाय जीभ ही नर्क दिखावे।' इसमें कोई दो राय नहीं हैं कि इस जीभ के कारण ही स्वर्ग और नरकों का निर्माण इस धरा-धाम पर हुआ है ।भला हो उस जीभ निर्माता का जिसने मानव के मुख में एक ही जीभ दी।यदि एक से अधिक जीभें होतीं तो संसार का रूप कुछ और ही होता।जब एक ही जीभ सौ प्रकार से सक्षम हो ,तो बहुत जीभें क्यों दी जातीं? अभी तो अर्थ का अनर्थ होता है ,फिर पल -पल महा अनर्थ ही होते। स्वर्ग की कल्पना करना भी असंभव हो जाता।साँप की जीभ के दोनों भाग विविध प्रकार की गंधें ग्रहण करते हैं ;किन्तु मनुष्य की जीभ क्या कुछ ग्रहण नहीं करती? इतना अवश्य है कि इसके सहयोगी दो नेत्र औऱ दो कान भी इसकी भरपूर मौन मदद करते हैं।अपना काम करके झटपट बत्तीस हिमायतियों के बीच लुप्त हो कर अपना भोला भाव दर्शन करती है। वास्तव में जीभ की महिमा है अपरम्पार ।वह अच्छा ही है मुँह का बंद हो जाता द्वार । अन्यथा खुले रहते यदि इसके किवाड़ तो भड़-भड़ करती रहती हर पल अनिवार।
●शुभमस्तु !
20.06.2023◆ 6.30आ०मा०
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