264/2023
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●© शब्दकार
● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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शुभागमन आषाढ़,बरसता झर-झर पानी।
नभतर मेघ प्रगाढ़, धरा पर उतरा दानी।।
काले - भूरे मेघ, मौन आह्वान कर रहे,
घटा पवन का वेग , टपाटप करती छानी।
मिटी धरा की प्यास,सृजन गर्भान्तर होता,
बँधी कृषक को आस,निराशा पड़ी सुलानी।
अंकुर हरे अनेक, धरणि पर छाए ऐसे,
धी में उगा विवेक, समझ लें इसके मानी।
तृप्त सभी हैं जीव,मनुज खग ढोर लता तरु,
चातक रटता पीव, गगन में गूँजी बानी।
देख रही है बाट, विरहिणी पिया न आए,
खड़ी हमारी खाट, वही फिर बात पुरानी।
जोता गया न खेत, बीज बोया क्यों जाए?
नई फसल के हेत, बिगड़ने लगी कहानी।
चौमासे की रात,'शुभम्' जी क्या बतलाएँ,
कही न जाए बात,पिया की प्रेम - दिवानी।
●शुभमस्तु !
19.06.2023◆6.00आ०मा०
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