275/2023
[ बूँदाबाँदी,बरसात,धाराधार, पावस,चातुर्मास]
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●©शब्दकार
● डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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● सब में एक ●
बूँदाबाँदी ने किया,शीतल नम परिवेश।
हर्षित सभी किसान हैं,हरित धरा के केश।।
बूँदाबाँदी से पड़ी, शीतल मंद फुहार।
हँसे लता तरु जंतु जन,पिक की मधुर गुहार।।
आते ही बरसात के,मिटी धरा की प्यास।
तपती थी जो जेठ में,अब क्यों रहे उदास।।
करें प्रतीक्षा जीव जड़,कब आए बरसात।
अंकुर उगते अवनि में,मंगल शुभद प्रभात।।
सावन भादों मास में,बरसे धाराधार।
बादल छाए व्योम में,करते कृपा अपार।।
देख बरसता मेघ को, भू पर धाराधार।
मोद भरे नर - नारियाँ, है कृतज्ञ संसार।।
माधव ही ऋतुराज है, रानी पावस मीत।
सुन कोकिल आह्वान को,बजे सलिल-संगीत।
कंत अकेली छोड़कर, मत जाना परदेश।
पावस आई झूमकर,विरह न हो लवलेश।।
पावन चातुर्मास में,श्रावण भादों क्वार।
कर अर्चन हरि विष्णु का,कार्तिक है त्योहार।।
करें भक्ति व्रत शुभ्र प्रिय,आया चातुर्मास।
शोभन शुचि परिवेश है,हरि निद्रा आवास।।
● एक में सब ●
बूँदाबाँदी हो रही,
ऋतु पावस बरसात।
बरसे धाराधार जल,
चातुर्मास प्रभात।।
●शुभमस्तु !
28.06.2023◆6.30आ०मा०
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