रविवार, 11 जून 2023

तुम अगर दिन को रात कहो ,हम रात कहेंगे● [ व्यंग्य ]

 252/2023

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● © व्यंग्यकार 

● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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 आगे बहरा, पीछे अंधा।चल निकला तेजी से धंधा।। 

बकलोलों का सुदृढ़ कंधा।इन्हीं तीन से चमचा बंधा।।

 चमचा तभी तक चमचा है,जब तक वह स्वतंत्र भगौना नहीं बन जाता।बड़े भगौने की तरह नहीं तन पाता।वरना उसे तब तक स्व भगौना वाणी में स्वर में स्वर देते हुए यही गाना गाना होगा: तुम अगर दिन को रात कहो,हम रात कहेंगे। देश औऱ समाज में अँगुलियों के पोरों पर गिने जा सकने वाले भगौनों की तुलना में चमचों की संख्या अनगिनत है।निरंतर चमचों की बढ़ती हुई संख्या चिंतित करती है।

ये तो आप जानते ही हैं कि चमचे में दिमाग नहीं होता।हर चमचा चाहे वह प्लास्टिक का या फाइबर का हो अथवा लोहा ,पीतल या तांबा निर्मित हो; वह निरंतर इस प्रयास में रहता है कि वह चाँदी का चमचा बने या सोने में तब्दील हो जाए, वरना उसकी चमचा योनि का लाभ ही क्या है? यद्यपि यह चौरासी लाख योनियों से भिन्न योनि नहीं है। चमचे के नाम से एक नए 'भारतीय चमचावाद' का जन्म हुआ है,जो अहर्निश अपने प्रिय भगौने को समर्पित रहता है।अपने प्रिय और सम्माननीय भगौने के प्रति उसे इतनी अन्ध भक्ति रहती है कि वह क्षणमात्र के लिए भी उससे विमुख नहीं होता।भगौना जब तक अपना चूल्हा नहीं बदलता तब तक चमचा भी अपने समर्पण से टस से मस नहीं होता।यदि तत्कालीन भगौना बबूल को नीम कहता है तो यह अनिवार्य है कि चमचा भी बबूल को भी नीम ही कहेगा। चमचे का यह समर्पण,त्याग औऱ कभी - कभी उसका बलिदान सराहनीय हो जाता है। उसकी इस सराहना का आधार है उसकी अंधभक्ति ।उसे तो अपने भगौने का अनुगामी ही रहना है। ठीक उसी प्रकार जैसे एक ब्याई हुई भैंस का लभारा।लभारे को भगौने से दूध का लाभ है; तभी तो वह उसके थनों को न छोड़ने के लिए बाध्य है।

 चमचे के बिना भगौने का अस्तित्व सोचा भी नहीं जा सकता। जितना बड़ा भगौना ,उतना ही बड़ा या अधिसंख्य चमचे उसकी आरती में अहर्निश तल्लीन रहते हैं।ये चमचे ही उसकी पूँछ हैं। जिसकी जिसकी पूँछ जितनी लंबी , उसकी पूछ भी उतनी ही अधिक। यह चमचा -चातुर्य की ही क्षमता है कि वह अपने भगौने को माँज -माँज कर चमका देता है।भगौने के भव्य दरबार में हर समय समर्पित चमचा धन्य है।एक चमचा किसी भगौने के साथ - साथ अनेक छोटे चमचों, चमचियों ,करछुलियों का उद्धार कर देता है। 

  यों तो चमचे छोटे -छोटे गाँवों, कस्बों , गलियों, मोहल्लों में बखूबी पाए ही जाते हैं। किंतु जब उनकी तरक्की होने लगती है तो बड़े - बड़े नगरों,महानगरों और देश प्रदेशों की राजधानियों में अपने चमत्कारों के चक्र चलाते हुए देखे जा सकते हैं। चमचे की एक बहुत बड़ी खूबी यह होती है कि उसे अपने सेवा कार्य से इतना अधिक समर्पण भाव होता है कि वह किसी काम को छोटा नहीं मानता।जूता उठाने और पहनाने से लेकर गड्ढा खोदने , बाँस- बल्लियाँ गाड़ने, दरियाँ बिछाने, बैनर सजाने के बाद जो समय बचता है ,उसमें भर -भर तेल मालिश करने से भी गुरेज नहीं करते ।चमचों का यह सहज समर्पण अपने भगवान के प्रति भक्त - भक्तिनों के समर्पण से किसी मायने में कमतर नहीं है। 

 चमचा एक परम आत्म विश्वासी जीव होता है।वह यह भी जानता है कि यदि वह नहीं होता तो भगौने का भले ही अस्तित्व होता किन्तु उसका जो महत्त्व और चमत्कार है;वह उसी के बलबूते पर है। उसके बिना उसकी चमक - दमक की कल्पना भी नहीं की जा सकती। चमचावाद की बढ़ते हुए चरण देखकर यह सहज ही विचारणीय हो जाता है कि देश और समाज में जब चमचों का इतना प्रभाव औऱ महत्त्व है तो उस पर शोध कार्य को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। शोध कार्य के लिए कुछ आधुनिक विषय प्रस्तावित कर रहा हूँ, जिन पर कार्य करके भारतीय चमचावाद को और भी शक्ति सम्पन्न किया जा सकता है।जैसे:

1.आधुनिक भारत की प्रगति में चमचों का योगदान।2.नई पीढ़ी के लिए नवीन अवसर औऱ चमचावाद।3.आधुनिक चमचावाद के विविध आयाम। 4.चमचावाद के चमत्कार और भगौने।5.चमचावाद के आर्थिक पहलू और सामाजिक क्रांति।6.चमचा - चापल्य से समाज कल्याण ।7.चमचावाद: एक उद्योग।8.भारतीय नारियों के बढ़ते हुए चरण और चमचियों का पोषण।9.सामाजिक चैतन्यता में चमचावाद की अवधारणा। 10.चमचावाद के खट्टे -मीठे पहलू।11.भारतीय चमचावाद में पुरानी चमचा पीढ़ी के अनुभवों का योगदान।आदि आदि। 

 यदि आप बेकार बैठे हैं। न नौकरी है न कोई धंधा ।तो आँखें बंद करके किसी वरिष्ठ चमचे से गुरु दीक्षा ग्रहण कर लीजिए। चमचागीरी गांधी गीरी की तरह कोई चोरी नहीं है। अपनी पत्नी, संतति और परिवार का भला चाहते हैं तो सच्चे चमचे के गुण अर्जित कर के अपना,समाज और देश के कल्याण में अपनी अहं भूमिका का निर्वहन कीजिए। बस इतना ध्यान रखना है कि भगौने को अग्रज भ्रातृ भाव से अंगीकार करते हुए इस मूल मंत्र को कभी भी विस्मृत मत कीजिए: 'वे अगर दिन को रात कहें ,तुम रात कहोगे। खटक जाए जो भगौने को न ऐसी बात कहोगे'।। ●शुभमस्तु !

 11.06.2023◆8.00प०मा०

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