254/2023
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●©शब्दकार
● डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम'
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जीवन की हर बात निराली।
शुभता की सौगात सँभाली।।
ईश्वर से बचपन को तोला,
पारदर्शिता भोली - भाली।
बचपन निकट सत्य के होता,
होती छलनी एक न जाली।
चिड़िया ज्यों सेती अंडों को,
नाचें - कूदें दे - दे ताली।
क्षमादान बालक सौ पाए,
बुरा न मानें दें यदि गाली।
बड़ा हुआ चालाकी छाई,
जलता है ज्यों जले पराली।
बचपन खेल - कूद में जाए,
यौवन खड़ा तान दोनाली।
बचपन कौन भूलता अपना,
रचना प्रभु ने अद्भुत ढाली।
बंद हुए सुख के दरवाजे,
छलना की चल उठी पनाली।
'शुभम्' सत्य -पर्याय बालपन,
यौवन काम - वासना थाली।
●शुभमस्तु !
12.06.2023◆ 5.45आ०मा०
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