272/2023
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● ©शब्दकार
● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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शोभन मेरा देश,जननि ने जन्म दिया है।
पावन है परिवेश,अन्न खा नीर पिया है।।
करते हैं जो द्रोह, शत्रु हैं भारत माँ के,
चिपकी जौंकें गोह,जन्म बदनाम किया है।
धन्य वही है देह, काम आए जननी के,
मिले धरा की खेह,सुकृत में नहीं जिया है।
व्यर्थ मनुज का गात,ढोर- सा जीवन जीता,
पछताए दिन-रात,फटे को नहीं सिया है।
उत्तम संतति-जन्म, नहीं दे पाए मानव,
भावहीन है मर्म,जननि शूकर कुतिया है।
कर्मों से ही यौनि, सुधरती जीव मात्र की,
बनता बकरी,गाय,भेड़,बछड़ा,बछिया है।
'शुभम्'मनुज तन श्रेष्ठ,कर्म का साधन तेरा,
कर्मठ बने यथेष्ट,ज्योति का पुंज दिया है।
●शुभमस्तु !
26.06.2023◆1.30 प०मा०
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