268/2023
[माँ,पिता,वात्सल्य,ममत्व,पुत्र]
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
●©शब्दकार
● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
● सब में एक ●
संतति हित माँ का सदा,आँचल छायादार।
उऋण नहीं होना कभी,आजीवन आभार।।
पिता और माँ का युगल,है ईश्वर साक्षात।
हर घर में होता सदा,उनसे 'शुभम्' प्रभात।।
अंबर-सा विस्तीर्ण है,नित्य पिता-उर मीत।
जो जाना क्षमता सदा,गाता है जय-गीत।।
यदि ईश्वर को देखना,घर को मंदिर मान।
कृपावन्त तेरे पिता,मूढ़ मनुज पहचान।।
गुरु माता पितु का सदा,यदि चाहें वात्सल्य।
सेवा - पूजन नित करें,वही ईश के तुल्य।।
माता के स्तन्य में,पीता शिशु वात्सल्य।
वही कृपा आशीष है,तन-मन हित नित बल्य।
मात-पिता सौजन्य का,मिलता जिसे ममत्व।
सफल वही संतति सदा,पाती जीवन-सत्व।।
माँ ममत्व-भंडार है,ज्यों निधिगत मधु नीर।
आजीवन सद गंध दे,पितु का अमर उशीर।।
पुत्र पात्रता शून्य जो, समझें शूकर - श्वान।
जनक-जननि को भूलता, मच्छर ढोर समान।।
फसल वही उत्तम सदा,रहित कंडुआ पेड़।
त्यों न पुत्र संतति कुटिल, मारे घर की रेड़।।
● एक में सब ●
पिता और माँ का मिला,
संतति को वात्सल्य।
पाता पुत्र ममत्व नित,
दिव्याशीष अतुल्य।।
●शुभमस्तु !
21.06.2023◆6.00आ०मा०
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें