बुधवार, 28 जून 2023

माँ ममत्व - भंडार● [ दोहा ]

 268/2023

 

[माँ,पिता,वात्सल्य,ममत्व,पुत्र]

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●©शब्दकार 

● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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       ● सब में एक ●

संतति हित माँ का सदा,आँचल छायादार।

उऋण नहीं होना कभी,आजीवन आभार।।

पिता और माँ का युगल,है ईश्वर  साक्षात।

हर घर में होता सदा,उनसे 'शुभम्' प्रभात।।


अंबर-सा विस्तीर्ण है,नित्य पिता-उर मीत।

जो जाना क्षमता सदा,गाता  है  जय-गीत।।

यदि  ईश्वर  को देखना,घर को मंदिर   मान।

कृपावन्त तेरे  पिता,मूढ़ मनुज    पहचान।।


गुरु माता पितु का सदा,यदि चाहें वात्सल्य।

सेवा  - पूजन नित  करें,वही ईश  के  तुल्य।।

माता  के  स्तन्य  में,पीता शिशु  वात्सल्य।

वही कृपा आशीष है,तन-मन हित नित बल्य।


मात-पिता सौजन्य का,मिलता जिसे ममत्व।

सफल वही  संतति सदा,पाती जीवन-सत्व।।

माँ ममत्व-भंडार है,ज्यों निधिगत मधु नीर।

आजीवन सद गंध दे,पितु का अमर उशीर।।


पुत्र पात्रता  शून्य जो, समझें    शूकर - श्वान।

जनक-जननि को भूलता, मच्छर ढोर समान।।

फसल वही  उत्तम सदा,रहित कंडुआ  पेड़।

त्यों न पुत्र संतति कुटिल, मारे  घर की रेड़।।

     

        ● एक में सब ●

पिता और माँ का मिला,

                        संतति को वात्सल्य।

पाता पुत्र ममत्व नित,

                           दिव्याशीष अतुल्य।।


●शुभमस्तु !


21.06.2023◆6.00आ०मा०

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