शुक्रवार, 30 जून 2023

हरी चूड़ियाँ ● [ नवगीत ]

 277/2023


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●© शब्दकार 

● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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हरी चूड़ियाँ

खन - खन बोलें

अँगना  गेह  रसोई।


गुन -गुन गाती

गीत सुहागन

मस्तक -बिंदिया चुप-चुप।

खड़ी ओट में

पिया निहारे

सट कपाट से छुप -छुप।।


कभी उठाती

पलकें दोनों

रस- घट युगल डुबोई।


जब गाती हैं

गीत चूड़ियाँ

प्रियता बरसे सज - धज।

आपस में

कुछ बतियाती -सी

चाल थिरकती ज्यों गज।।


मुखर निमंत्रण 

देती चूड़ी

औऱ  न समझे कोई।


मौन हो गईं

भरी कलाई

आलिंगन में जाकर।

प्रिया खो गई

तन - मन अपने

नेहामृत को पाकर।।


है निशंक वह

सहज समर्पण

अंतर देह भिगोई।


शब्द मौन हैं

साँसें गाएँ

तेज - तेज नव सरगम।

रुके हुए पल

कब तक रुकते

अंग- अंग है हर नम।।


शृंगारित हैं

सभी सृजन क्षण

एक प्राण तन दोई।


●शुभमस्तु !.

29.06.2023◆10.30 आ०मा०

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