279/2023
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● ©शब्दकार
● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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-1-
रहता कभी प्रसन्न मन,कभी उदासी मीत।
आनंदित रसमग्न हो, गाता मधु संगीत।।
गाता मधु संगीत, रूप पल-पल में बदले।
भरता भाव-कुभाव,कभी नहले पर दहले।।
'शुभं'न मन की चाल,समझ पाया रवि उगता।
बना रहा दिन-रात, जगत-मस्तक पर रहता।।
-2-
छाया आनन-पट्ट पर,सघन उदासी - अंक।
चिन्तातुरता छा गई,क्या वह गुप्त कलंक!!
क्या वह गुप्त कलंक,समस्या-समाधान का।
मिला न तुझको अंश,कष्ट है तुझे मान का।।
'शुभम्' वहीं निस्तार,जहाँ अवसाद समाया।
तैल - बिंदु विस्तार,रोक तब मिटती छाया।।
-3-
कोई सदा न एकरस,रह पाया इस लोक।
हर्ष कभी आनंदरत, कभी हो रहा शोक।।
कभी हो रहा शोक, मनुज-मन ऐसे डोले।
ज्यों पीपल के पात, हिले हों होले - होले।।
'शुभम्'शून्य परिणाम,पका कर जतन रसोई।
हुई उदासी ढेर, खेह बन रहे न कोई।।
-4-
मानव कालाधीन है, कर ले चिंतन मीत।
कभी रुदन हँसना कभी,सोहर परिणय गीत।।
सोहर परिणय गीत,उदासी जब भी आती।
भाता कब मनमीत, जिंदगी नहीं सुहाती।।
'शुभम्' देह सब एक,कभी नर बनता दानव।
कभी देव अवतार, कभी बनता है मानव।।
-5-
कविता में सजता वही,जैसा कवि का भाव।
कभी उदासी से भरा,कभी सुरस का हाव।।
कभी सुरस का हाव,उतर निधि मोती पाता।
गहराई का चाव, नई चमकार सजाता।।
'शुभम्' पहुँच की बात,नहीं जा पाए सविता।
कवि का वहाँ प्रसार,चमकता उसकी कविता।
●शुभमस्तु !
29.06.2023◆5.45प०मा०
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