शुक्रवार, 30 जून 2023

अभिनय● [ अतुकान्तिका ]

 280/2023

              

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● ©शब्दकार

● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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अभिनय में ही

जीवन बीता,

बचपन मात्र 

यथार्थ मनुज का,

शेष रहा सब रीता।


जो जैसा था

दिखा न पाया,

पहन आवरण

मास्क लगाया,

फिर भी छिपा न

सुमन कली का।


यौवन, प्रौढ़,

जरा सब नकली,

रूप गुप्त कर

नर ने असली,

किया नित्य ही

ढोंग बली का।


क्या नारी - नर

ढोंगी सारे,

जितना छिपता

धीमान बेचारे!

खाने को

घी दूध मलीदा।


'शुभम्' चलें

 उस ओर किनारे,

जहाँ न नाटक

नायक न्यारे,

खुला खेल

रघुवर संग सीता। 


●शुभमस्तु !


29.06.2023◆9.45प०मा०


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