शिक्षाप्रद कहानियों,पंचतंत्र, कथा सरित्सागर,विभिन्न उपदेशकों,गाथाओं,महाकाव्यों आदि के माध्यम से ज्ञान की अनेक जन हितकारी बातें मनुष्य समाज के समक्ष आईं और इतिहास की सामग्री बन कर रह गईं।अंततः जो कुछ भी वर्तमान में होता है अथवा हो रहा है तथा भविष्य में जो भी होगा; उसे भी एक न एक दिन इतिहास में ही बदल जाना है।अनेक सरल सुबोध विधाओं और वक्रोक्तियों ने उसे समझाने की युक्तियाँ उसके समक्ष परोसीं ; किंतु क्या सीधे - सीधे उसने उन्हें अपनी स्वीकृति प्रदान की? जहाँ तक मैं समझता हूँ, गंगा नदी में हजारों लाखों वर्षों से न जाने कितना जल बहकर सागर में मिल गया, किंतु मानव मन की थाह आज तक बड़े - बड़े ऋषि मुनि, उपदेशक,साधु - संत भी नहीं ले सके।
व्यंग्य विधा की अपनी तीसरी और अन्य विधाओं में अद्यतन प्रकाशित समस्त कृतियों में 'शुभम्'व्यंग्य वाग्मिता उन्नीसवीं कृति है। अपनी अन्य व्यंग्य रचनाओं की तरह इस कृति में भी मानव मन, मानव समाज, मानवीय संस्कृति और सभ्यता गत विडम्बनाओं का संक्षिप्त निरूपण अपनी एक विशेष भाषा शैली के माध्यम से करने का प्रयास किया गया है।जो बात सीधे-सीधे वाङ्गमुख शिक्षाप्रद कहानियों,पंचतंत्र, कथा सरित्सागर,विभिन्न उपदेशकों,गाथाओं,महाकाव्यों आदि के माध्यम से ज्ञान की अनेक जन हितकारी बातें मनुष्य समाज के समक्ष आईं और इतिहास की सामग्री बन कर रह गईं।अंततः जो कुछ भी वर्तमान में होता है अथवा हो रहा है तथा भविष्य में जो भी होगा; उसे भी एक न एक दिन इतिहास में ही बदल जाना है।अनेक सरल सुबोध विधाओं और वक्रोक्तियों ने उसे समझाने की युक्तियाँ उसके समक्ष परोसीं ; किंतु क्या सीधे - सीधे उसने उन्हें अपनी स्वीकृति प्रदान की? जहाँ तक मैं समझता हूँ, गंगा नदी में हजारों लाखों वर्षों से न जाने कितना जल बहकर सागर में मिल गया, किंतु मानव मन की थाह आज तक बड़े - बड़े ऋषि मुनि, उपदेशक,साधु - संत भी नहीं ले सके। व्यंग्य विधा की अपनी तीसरी और अन्य विधाओं में अद्यतन प्रकाशित समस्त कृतियों में 'शुभम्'व्यंग्य वाग्मिता उन्नीसवीं कृति है। अपनी अन्य व्यंग्य रचनाओं की तरह इस कृति में भी मानव मन, मानव समाज, मानवीय संस्कृति और सभ्यता गत विडम्बनाओं का संक्षिप्त निरूपण अपनी एक विशेष भाषा शैली के माध्यम से करने का प्रयास किया गया है।जो बात सीधे-सीधे कहने में व्यक्ति के मन और चेतना पर उतनी प्रभावी नहीं होती,जितनी एक व्यंग्य के माध्यम से हो सकती है। यह मेरा मानना है। व्यंग्य के माध्यम से व्यंग्यकार अपने गुदगुदाने वाले आक्रोश के द्वारा भ्रष्ट व्यक्ति, समाज, व्यवस्था,अनाचार,अनीति, विसंगतियों आदि की विविध विडम्बनाओं पर करारा प्रहार करने का प्रयास करता है।उसके द्वारा विद्रूपित समाज का ऐसा बिम्ब प्रस्तुत किया जाता है कि जिससे वह अपने सर्वांग से झकझोर दिया जाता है।
व्यंग्य वस्तुतः वर्तमान और विगत शताब्दी की एक ऐसी जीवंत विधा है , जो सबके चेहरे उघाड़ डालने में सक्षम है।लोकोत्तर चमत्कार उत्पन्न करने के लिए व्यंग्य एक वक्रोत्यात्मक रोचक विधा है।जो अपनी काव्यात्मक कला से समाज को झकझोरती है,वहीं दूसरी ओर उसका मनोरंजन करती हुई सत्य कक स्वीकार करने के लिए बाध्य भी कर देती है।व्यंग्यकार के द्वारा एक ऐसी चेतना शक्ति का प्रादुर्भाव किया जाता है जिसमें उसके मानवीय मूल्य निहित होते हैं।सहित्य में जो रसात्मकता व्यंग्य रचनाओं के माध्यम से उत्पन्न की जाती है,वह अन्य विधाओं के माध्यम से नहीं की जाती।
व्यंग्य रचना में हास्य और व्यंग्य का मिला जुला पुट उसे जीवंतता तो प्रदान करता ही है, साथ ही वह आलोचनात्मक ,प्रतिक्रियात्मक और रसात्मक भी होता है। व्यंग्य में हास्य का उपयोग उपहास और कटाक्ष के लिए किया जाता है। इसके विपरीत हास्य में उसका विशुद्ध प्रयोग मात्र हँसने-हँसाने के लिए ही किया जाता है। हास्य प्रतिक्रियात्मक और आलोचनात्मक नहीं होता।व्यंग्य अपनी व्यंजना शक्ति से पाठक और श्रोता को उसकी यथार्थता से अवगत कराने में सक्षम होता है।उसको सचाई से सजग करता है।वह मानव जीवन की समस्याओं के मूलभूत कारण को समझाता है।इतना ही नहीं व्यंग्य के माध्यम से समस्याओं का निदान भी किया जाता है।इससे मानव-जीवन की त्रुटियों औऱ जीवन और समाज विरोधी अवधारणाओं का निराकरण भी किया जाता है।
इस कृतिकार के द्वारा इस 'शुभम् व्यंग्य वाग्मिता शीर्षकस्थ कृति में जिन व्यंग्य रचनाओं के माध्यम से व्यक्ति, समाज, व्यवस्थाओं और सार्वदेशिक विसंगतियों को निरूपित किया गया है,उनमें व्यंजनात्मकता के साथ -साथ विनोदात्मकता का सम्पुट भी है। व्यंग्य अपनी दोहरी शक्ति से दोधारी तलवार की तरह प्रहार करते हुए शनैः - शनैः गुदगुदा भी रहा है। इस व्यंग्य कृति का कृतिकार जहाँ एक गद्यकार है ; वहीं वह एक कवि भी है। कवि। की काव्य - चेतना से उसकी समस्त रचनाओं में एक नवीन चेतना औऱ जीवंतता का संचार हुआ है। जहाँ अन्य व्यंग्यकार अपनी व्यंग्य रचनाओं में मात्र गद्य का ही आश्रय लेते हैं ,वहीं इस कृतिकार ने काव्य के रस रसांगों से भी समाविष्ट किया है।इस प्रकार इन समस्त रचनाओं में काव्यात्मक विनोद उन्हें प्राणवंत बना रहा है।इन व्यंग्य रचनाओं में कोरे हास्य की सृष्टि के लिए काव्यात्मक रसमयता का संचार नहीं किया गया है।
सहित्य की विविध गद्य और पद्य विधाओं में व्यंग्य विधा का महत्त्वपूर्ण स्थान है।व्यंग्य व्यंग्यकार की वैचारिक स्वाधीनता का प्रतीक है। वैचारिक स्वाधीनता के दुरुपयोग से सर्वत्र बचा गया है। सहित्य समाज का दर्पण है,इसलिए उसमें ऐसी किसी बात के लिए लेशमात्र भी स्थान नहीं है ,जो व्यक्ति, देश और समाज के लिए घातक हो।विनोद औऱ काव्यत्व से व्यंग्य की कटुता को न्यूनतम करने का प्रयास किया गया है।व्यंग्य रचना में विनोद का पुट उसके कटु प्रभाव को न्यूनतम करता है। बिना व्यंग्य का हास्य -विनोद तो हो सकता है ,किन्तु विनोद शून्य व्यंग्य लवणरहित शिकंजी की तरह अलोना ही है ।
मेरे द्वारा प्रणीत 'शुभम व्यंग्य वाग्मिता कृति में कुछ वैचारिक लेखों, कहानियों और संस्मरणों को भी उचित स्थान दिया गया है। इस कृति के अंतर्गत जो कुछ निवेदन किया गया है,इसकी सत्यता की कसौटी हमारे गुणग्राहक सहित्य मर्मज्ञ मनीषी हैं। मुझे विश्वास है कि वे इस शब्दकार की लेखनी को अपने शुभाशीष से अनुग्रहीत करेंगे।
मैं अपने कवि शिष्य श्री कौशल महंत 'कौशल' (छत्तीसगढ) का हृदय से आभारी हूँ कि उन्होंने स्वयं और अपने सुपुत्र श्री योगेश महंत जी के कठिन परिश्रम के परिणाम स्वरूप उसे संसार के समक्ष प्रकाशवान बनाने में अपनी अहं भूमिका का निर्वाह किया है।पुस्तक के मुखावरण निर्माण में अपने सुपुत्र श्री भारत स्वरूप राजपूत औऱ सुपुत्री सुश्री जयप्रभा की भूमिका को भी विस्मृत नहीं किया जा सकता। माँ सरस्वती को पुनः -पुनः नमन करते हुए अपनी यह उन्नीसवीं कृति आप सभी सुधी पाठकों के कर कमलों में सौंपते हुए हृदय में अत्यधिक हर्षानुभूति होना स्वाभाविक है।
स्वाधीनता दिवस डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
15 अगस्त 2023 सिरसागंज(फ़िरोज़ाबाद)
संवत2080 विक्रमी पिन :283 151
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