246/2023
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● शब्दकार ©
● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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बचपन की हर बात निराली।
शुभता की सौगात सँभाली।।
बचपन से ईश्वर की तुलना।
पानी में मिश्री का घुलना।
पारदर्शिता भोली - भाली।।
बचपन की हर बात निराली।।
निकट सत्य के बचपन होता।
हँसना - रोना सब सुख बोता।।
होती छलनी एक न जाली।।
बचपन की हर बात निराली।।
देखें प्यार भरी आँखों से।
ज्यों चिड़िया सेती पाँखों से।।
नाचें - कूदें दे- दे ताली।
बचपन की हर बात निराली।।
बालक से गलती हो जाएँ।
क्षमादान सौ - सौ हम पाएँ।।
बुरा न मानें दें यदि गाली।
बचपन की हर बात निराली।
बड़ा हुआ चालाकी आई।
झूठ छलों की फैली काई।।
जलता है ज्यों जले पराली।
बचपन की हर बात निराली।।
बचपन खेले - कूदे खाए।
सद इच्छा आनंद मनाए।।
यौवन खड़ा तान दोनाली।
बचपन की हर बात निराली।।
कौन भूलता बचपन प्यारा।
भेद भ्रमों से मिले किनारा।।
रचना अद्भुत ईश बना ली।
बचपन की हर बात निराली।।
बचपन कब तक रुकता भाई।
सात - आठ तक गई लुनाई।।
वय किशोर यौवन में ढाली।
बचपन की हर बात निराली।।
छाई झूठ - कपट की माया।
आजीवन घन घोर मचाया।।
विदा हुआ बचपन का माली।
बचपन की हर बात निराली।।
बंद हुए सुख के दरवाजे।
प्रौढ़ आयु में बाजे गाजे।।
छलना की चल उठी पनाली।
बचपन की हर बात निराली।।
'शुभम्' सत्य - पर्याय बालपन।
यौवन गरम मसाला सालन।।
खाता काम - वासना थाली।
बचपन की हर बात निराली।।
●शुभमस्तु !
08.06.2023◆6.00आ०मा०
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