276/2023
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● © शब्दकार
● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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जलधर उमड़े व्योम में,ज्यों मम उर में भाव।
हरी-भरी धरती हुई, मिटे तपन के घाव।।
सावन भादों में लगी,जलधर झड़ी अपार।
हर्षित हैं नर-नारि सब,जड़- चेतन संसार।।
काले जलधर झूमते,ज्यों काले गज व्योम।
दिनकर भी दिखते नहीं, नहीं चमकते सोम।।
जलधर जल धारण किए, आए आँगन द्वार।
कृषक मुदित आभार में,है प्रसन्न संसार।।
पहले पावस मास में,खिलते थे जो रंग।
अब जलधर बरसा रहे,नहीं केंचुआ संग।।
वीर बहूटी अब नहीं,दिखती सावन मास।
भेक नहीं टर्रा रहे,जलधर का उपवास।।
जलधर देखे व्योम में,हुई कोकिला मौन।
पीउ-पीउ की रट कहाँ,सुनता है अब कौन??
ले दलबल जलधर चले, बरसाने जलधार।
प्यासी अवनी को करें,दे -दे अपना प्यार।।
बाँहों में अपनी भरे, आए जलधर श्याम।
आलिंगित धरणी खिली,प्रमुदित ललित ललाम
बिजली कौंधी शून्य में, तड़पे बारंबार।
जलधर करते गर्जना, बरसा कर जलधार।।
विरहिन प्यासी नेह की,आए अभी न श्याम।
जलधर वाणी जब सुनी,बेकल राधा वाम।।
●शुभमस्तु !
28.06.2023◆10.30आ०मा०
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