349/2023
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● शब्दकार ©
● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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केले का तना
हरित श्वेत
मसृण
रहित व्रण
शीतल कण- कण
प्रति तृण।
किसने जाना
रहस्य अंतर का,
खुलता गया
परत दर परत,
किन्तु अंत क्या?
उधड़ता गया।
अंत में
शेष रह गया
मात्र एक शून्य,
शून्य से आगमन,
शून्य में ही विलीन,
मलता मुख मलीन।
आदि से अंत तक
मात्र शून्य,
तथापि इतनी ऐंठ?
कान को
इधर से उधर
या उधर से इधर
को उमेठ,
सब वही
मात्र शून्य।
कैसे हैं ये 'शुभम्'
रस्सी के बल,
कसम जो ली है
जलकर भी
निकलना नहीं बल,
सूर्य गया ढल,
अब हाथ मल!
● शुभमस्तु!
09.06.2023◆6.00आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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