281/2023
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●© शब्दकार
● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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असली जीवन बचपन वाला।
नहीं मुलम्मा पचपन वाला।।
बचपन में सब स्वच्छ शुद्ध है,
नहीं नशे का छुटपन ढाला।
अंदर जैसे वैसे बाहर,
नहीं लगा झुटपन का ताला।
नंगा तन ,पर नहीं नंगई,
यौवन में नंगापन काला।
खाने और दिखाने को ये,
नहीं बतीसा ठनगन वाला।
हम न झूठ के लगा मुखौटे,
पिटवाते हैं अपन दिवाला।
'शुभम्' विवशता एक हमारी,
रुके न अपना बचपन आला।
●शुभमस्तु !
30.06.2023◆1.30 प०मा०
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