243/2023
[सच्चाई, परिधान ,बदनाम, आहत, यात्रा ]
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●शब्दकार ©
● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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● सब में एक ●
सच्चाई से मोड़ मुख,मिले न मन को धीर।
जिनके उर निर्मल सदा,बनते भक्त कबीर।।
मिथ्या एक बचाव को,सौ-सौ मिथ्या बोल।
छिपती सच्चाई नहीं,होती 'शुभम्'अमोल।।
हे नर!अपनी देह धर, बगुले-से परिधान।
हंस नहीं होगा कभी,झूठी तेरी शान।।
चटक-मटक परिधान की,देगी तुझे न मान।
मँडराते भौरें सदा, करने को मधु - पान।।
बद अच्छा बदनाम से,कर ले मीत विचार।
लगी चरित पर कालिमा,धुले न बार हजार।।
कर्मों से ही नाम है, कर्मों से बदनाम।
कर्म सदा शुभ कीजिए,बना देह को धाम।।
कर्म कभी हो भूल से,यदि निकृष्ट हे मीत।
पावन मन आहत रहे,गा न सके सद गीत।।
सत्कर्मों से मन सदा,होता निर्मल मीत।
आहत वह होता नहीं, चले न जो विपरीत।।
जीवन- यात्रा में मिलें, छोटे बड़े पड़ाव।
चरैवेति के मंत्र से, चले पंथ भर चाव।।
आते पथ में मोड़ भी, यात्रा में हर ओर।
जीवन सीधा पथ नहीं, मिलते कागा मोर।।
● एक में सब ●
सच्चाई परिधान है,
करे न नर बदनाम।
आहत मन करती नहीं,
यात्रा - पथ अविराम।।
●शुभमस्तु !
07.06.2023◆5.00आ०मा०
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