274/2023
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●©शब्दकार
● डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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खड़ी ओट में
लख मृगनयनी
मन खिंचता ही जाए।
खुले केश सिर
माथे बिंदिया
मंद -मंद मुस्काती।
कुंडल झूमें
कानों में दो
द्विज-मुक्ता चमकाती।।
भौंहें वक्रिम
सजी कँटीली
काजल नयन सजाए।
आधी लुक - छिप
मुदित निहारे
देखे उसे न कोई।
देख सके वह
सबको इकटक
दृष्टि दूध से धोई।।
जो देखे वह
यौवन-बाला
देख - देख रह जाए।
लगता है ये
प्रेमी उसका
पथ पर आता-जाता।
मिले नयन से
नयन युगल के
देख श्याम शरमाता।।
बरसाने की
राधा मानो
दृष्टि न थकने पाए।
●शुभमस्तु !
27.06.2023◆7.30आ०मा०
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