बुधवार, 28 जून 2023

मन खिंचता ही जाए ● [ गीत ]

 274/2023


●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●

●©शब्दकार 

● डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'

●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●

खड़ी ओट में

लख मृगनयनी

मन खिंचता ही जाए।


खुले केश सिर

माथे बिंदिया

मंद -मंद  मुस्काती।

कुंडल झूमें

कानों में दो

द्विज-मुक्ता चमकाती।।


भौंहें वक्रिम

सजी कँटीली

काजल नयन सजाए।


आधी लुक - छिप 

मुदित निहारे

देखे उसे  न कोई।

देख सके वह

सबको इकटक

दृष्टि दूध से धोई।।


जो देखे वह

यौवन-बाला

देख - देख रह जाए।


लगता है ये

प्रेमी उसका

पथ पर आता-जाता।

मिले नयन से

नयन युगल के

देख श्याम शरमाता।।


बरसाने की

राधा मानो

दृष्टि न थकने पाए।


●शुभमस्तु !


27.06.2023◆7.30आ०मा०

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...