रविवार, 28 जुलाई 2019

मिलन [छंद: दोहा , चौपाई]

 ||दोहा ||

चकवी  से  पूछो  सखे!
विरह मिलन  की बात।
बिना  मिलन कैसे  कटे,
तेरी      सारी      रात।।

 ||चौपाई ||

मिलन विरह की रीति बनाई।
बाद निदाघ  सु पावस आई।।

मिलन विस्मरण विरहजगाता
मिलते उर उस ओर भगाता।।

युग- सा लगे  विरह  पल भर का।
युग का मिलन सूक्ष्म लघु कण सा।।

विरह - मिलन  का खेल पसारा
विरही   का   संसार  असारा।।

|| दोहा ||

अश्रु विरह के अनल सम,
दाहक   देह   जलाय।
मिलन - अश्रु  बौछार  से,
पावस  में झरि जाय।

|| चौपाई  ||

तपन विरह की जब से लागी।
मिलन कामना   उर अनुरागी।।

जीवन   का  आधार  मिलन है।
बिना मिलन अति शूल चुभन है।।

मिलते युगल अधर जब प्यासे।
बनता  चुम्बन  रुकें न साँसें।।

समय   ठहर  जाता  है ऐसे।
रुक जातीं   दो सुइयाँ  जैसे।।

|| दोहा ||

सुध -बुध तन की क्यों रहे,
एक प्राण दो देह।
ऐसा मिलन सराहिये,
लेश नहीं सन्देह।।

||चौपाई||

सागर  से  मिल जाती सरिता।
कवि की बन जाती है कविता।।

खग चकोर  शाखा पर होता।
रात -रात भर क्या वह सोता?

किरणें    चुगता   चारु चाँद की।
मात्र   चाहना  रश्मि - स्वाद की।

मोर   नाचता  निपट  अकेला।
प्रिया   मोरनी  मिलन दुकेला।।

||दोहा||

पशु -  पंक्षी नर  - नारि सब,
जल थल नभचर जीव।
मिलन हेतु तज लाज दें,
भंग  करें  हर   सींव।।

||चौपाई||

हुआ  अँधेरा चाँद चमकता।
भुजपाशों में बाँध उमगता।।

सलज  चाँदनी  फैल रही  है।
मौन     बनी  संयोग यही  है।।

अम्बर   अवनी से आ मिलता।
रिमझिम से हर तृण तृण खिलता।

बादल गरज -गरज कर छाता।
मिलन धरा को बहुत सुहाता।।

||दोहा||

प्रेयसि प्रियतम का मिलन,
 प्रकृति दत्त उपहार।
सृष्टि सृजन का हेत है,
विकसित यह संसार।।

||चौपाई||

विरहिन   प्यासी   करे प्रतीक्षा।
कब आएँ पिय शमन तितीक्षा।।

आता जब मनभावन सावन।
होता मिलन प्रिया से पावन।।

रातें   जब  सुहाग  की आतीं।
तन -मन की इच्छा पुर जातीं।

अपनी  - अपनी सबकी शैली।
क्रीड़ा    वही प्रेम सँग खेली।।

जड़ -   चेतन  संसार में,
विरह -मिलन का योग।
एक -एक के योग से,
'शुभम '  सृजन संयोग।

💐 शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
💞 डॉ. भगवत स्वरूप  'शुभम'


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