मंगलवार, 30 जुलाई 2019

ग़ज़ल

मेरी पायल छनछनाती रही रात भर।
चाँदनी    गुनगुनाती  रही रात भर।।

लाज   के  बोल घूँघट में सिमटे रहे,
तबस्सुम झिलमिलाती  रही रात भर।

नज़रों   से  नज़रें   मिलीं झट झुकीं,
उनकी नज़रें रिझाती रहीं रात भर।

परवाना   जला   जलता  ही गया,
शम्मा  थरथराती   रही रात भर।

पहली - पहली  ही उनसे मुलाक़ात थी,
संगिनी  कसमसाती  रही रात भर।

फ़ूल   महके  तो  दो दिल दहकने लगे,
कलियाँ  गुल खिलाती रहीं रात भर।।

चाहों ने बाहों में लिया जब 'शुभम'
शरमाती    लजाती  रही रात भर।

💐 शुभमस्तु!
✍ रचयिता ©
💞 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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