गुरुवार, 25 जुलाई 2019

नथ का मोती [कुण्डलिया]

नारी    पहने    नाक  में,
नथ    नथनी   कहलाय।
वामा के सँग   नाथ  भी,
नथनी   से   नथ  जाय।।
नथनी    से   नथ   जाय,
चाँद   का  बना  चकोरी।
देख   दृष्टि    थम   जाय,
निहारे     चोरी  - चोरी।।
पति   सौभाग्य   प्रतीक,
नयन  में   भरी  खुमारी।
शुभ   सुहाग  की    रात,
न  बोले मुख  से नारी।।1।

मोती   नथ     में  सोहता,
आभा      गौर    कपोल।
हँस -हँस बोले  सजन से,
मोती     करे    किलोल।।
मोती     करे     किलोल,
सलज सकुचाती  बाला।
बिना   नशे    का   नशा,
न  पी  है   उसने  हाला।।
'शुभम'प्रकृति का सृजन,
गेह   की   नारी   जोती।
मानो      सिरजा    संग-
देह के नथ का मोती।।2।

बिंदी   लसे    ललाट  पर,
कुंडल     सजते      कान।
नाक -  वास   नथनी  करे,
अरुण   अधर     मुस्कान।।
अरुण   अधर      मुस्कान,
चिबुक पर तिल भी काला।
दाड़िम      सजे     सुरम्य,
गाल   का  रूप   निराला।।
'शुभम'     सरल   सानन्द,
बोलती     भाषा    हिन्दी।
नारी       रत्न      महान,
लाल माथे  की  बिंदी।।3।

 बतरस   अपने   आप में,
स्रोत     सुखद    आनन्द।
तन - मन हरसे  आप ही,
बंध    रहित     स्वच्छन्द।।
बंध    रहित      स्वच्छन्द,
तनाव  न  आते   मन  में।
खुलते     सारे         फंद,
चले    जाओ  घन वन में।।
'शुभम'   कपट   छल  दूर,
सभी कुछ मानव के वश।
जीवन        है     आनन्द ,
अगर तुम करलो बतरस।।4।

तन  -  मन  के  शृंगार   हैं,
वाणी    के     मधु    बोल।
माँस   विनिर्मित  जीभ से,
विष  में      अमृत    घोल।।
विष  में       अमृत    घोल,
सभी  के   मन को  जीतो।
सबका       हो     कल्याण ,
सभी  का    अच्छा  चीतो।।
'शुभम ' अमर      हैं  वचन,
धरा      अम्बर     तारागन।
नश्वर       देह        विशाल,
अमर तव होगा तन मन।।5।

💐 शुभमस्तु!
✍रचयिता ©
💞 डॉ. भगवत  स्वरूप 'शुभम'

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