शुक्रवार, 26 जुलाई 2019

मैं पुस्तक कहलाती [बालगीत]

अपनी  सारी  कथा  सुनाती।
कहती 'मैं पुस्तक कहलाती।।'

'मेरे  अन्दर    गीत    कहानी।
मेढक मछली   नाना  नानी।।
रंग - बिरंगे   चित्र    सजे  हैं।
देखो   उनको   बड़े  मजे हैं।।'
सपनों   में  मेरे    आ  जाती।
कहती 'मैं पुस्तक....

 गिनती   और पहाड़े  मुझमें।
जोड़  घटाना  मेरे    वश  में।।
गुणाभाग दशमलव सिखाती।
प्रतिशत ब्याज मुझे बतलाती।
सोते  -  सोते    मुझे  जगाती।
कहती मैं पुस्तक ....

चाँद सूर्य का  ज्ञान जान लो।
इसको तुम भूगोल मान लो।।
वृक्ष  और  बेलों  का   ज्ञान।
सभी तरह का  भी विज्ञान।।
हम क्या थे यह भी बतलाती।
कहती मैं पुस्तक....

ये   देखो  यह  कला तुम्हारी।
फ़ूल बनाओ भर भर क्यारी।।
चूहा बिल्ली   रीछ   बनाओ।
रंग भरो माँ को दिखलाओ।।
सीख मुझेअच्छी सिखलाती।
कहती मैं पुस्तक....

पुस्तक    का सम्मान करो तुम।
पढ़ने से मत कभी डरो तुम।।
जो    करते   मेरा     सम्मान।
वे    बच्चे    बनते    विद्वान।।
बार -बार मुझको समझाती।
कहती मैं पुस्तक ....

💐 शुभमस्तु!
✍ रचयिता ©
📒 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...