दाँतों में होता नहीं ,
शब्दों में विष - खान।
धरती पर वह जीव ही,
कहलाता इंसान।।1।।
शब्दों से बरसे सुधा,
शब्दों से विषधार।
शब्दों के खिलते सुमन,
महके उर संसार।।2।।
वाणी से खिलती कली,
उर की दिन औ' रात।
वाणी सदा अमोल है,
मानव को सौगात।।3।।
वाणी की वीणा बजी,
झूम उठा संसार।
कलरव कलकल जब सुना,
नाचा हृदय अपार।।4।।
कोयल कौवा एक रङ्ग,
पर वाणी में भेद।
एक घोलता अमृत - रस ,
करता दूजा छेद।।5।।
शब्दों से अपमान के,
भरते कभी न घाव।
बीच धार में डूबती,
अपशब्दों की नाव।।6।।
द्रुपद - सुता के शब्द से,
उठी सुनामी क्रूर।
भीषण उस संग्राम में,
सब कुछ चकनाचूर।।7।।
शब्दों से ही मान है,
शब्दों से अपमान।
शब्दों से घर घर बने,
आन मान औ' शान।।8।।
ईंट और सीमेंट से,
बनते मात्र मकान।
पर घर बनते शब्द से,
जाने सकल जहान।।9।।
शब्द - बाण उर में लगे,
बेधे सकल शरीर।
मरहम शब्दों की हरे,
गहरी -गहरी पीर।।10।।
सृजित सृष्टि सब शब्द से,
शब्द ब्रह्म का रूप।
मानव दानव देवता,
बँधे शब्द के यूप।।11।।
💐 शुभमस्तु!
✍रचयिता ©
डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
सार्थक दोहे
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