गुरुवार, 18 जुलाई 2019

रिमझिम रिमझिम [अतुकान्तिका]

सावन बरसा
तनमन हरसा,
पादप लता
प्राणि जीव जन
जड़ - चेतन का
कण -कण सरसा,
झरती बुँदियाँ
रिमझिम रिमझिम।

बूँद- बूँद कर
भरे  सरोवर
सरिता ताल -
तलैया पोखर
खेत बाग़ वन
झूमे उपवन,
झरती बुँदियाँ
रिमझिम रिमझिम।

भीगी चोली
चुनरी साड़ी,
देह लिपटती
झुके नयन दो
लाज सिमटती
बाला नारी,
बजती पायल
चुपचुप बिछुआ
धुली महावर
घायल करतीं
बुँदियाँ तन मन,
झरती बुँदियाँ
रिमझिम रिमझिम।

नंग -धड़ंग
निकलते घर से
छोटे बालक ,
गली सड़क आँगन
बागों में ,
खुली छतों पर
हँसते खिल खिल करते
दौड़ लगाते,
 नहीं वर्जना
मात-पिता की
वे सुन पाते,
उधर झकोरे
तेज पवन के
शोर मचाते,
चंचलता में
खूब सिहाते
नग्न नहाते,
ढँके गगन से
मेघाडम्बर से
झरती बुँदियाँ
रिमझिम रिमझिम।

आम्रकुंज में
बड़ी और मजबूत
शाख पर
पड़े हिंडोले
ग्राम् वासिनी सखियाँ
सारी झूला झूलें,
पींग बढ़ाकर
झोटे देतीं
बारी-बारी ,
रक्षाबन्धन
हरियाली तीजों की
 करती तैयारी,
गातीं कजरी
गीत मल्हारें,
मस्त बहारें,
आई पीहर
सधवा नारी सारी
लगा हथेली
मेंहदी अरुणिम,
कम रचती है
उसके हाथों
होतीं जो
निज पिया की प्यारी।
दिखलाती हैं
हिना रची क्या
उसके करतल,
सखी परस्पर,
धुली महावर,
मेघ बरसते
दिन रजनी भर
झरती बुँदियाँ,
रिमझिम रिमझिम।

घर - घर बनतीं
श्वेत सिवइयां,
पूजा अर्चन की तैयारी,
बाला-नारी,
सुखा न पाएँ
बरस रहीं नित
झरतीं  बुँदियाँ
रिमझिम रिमझिम।

ससुरालय में
बूरा खाने
को तत्पर
नव युवक विवाहित
उमंगित उत्साहित
साली सलहज की
संगत में
 रंगत करने
चुहलबाजियों की उड़ान में
नवरंग भरने,
जग की चिंताओं से
मन -बगिया को
पुष्पित करने
और उधर
झर रहीं निरन्तर बुँदियाँ
रिमझिम रिमझिम।।

💐शुभमस्तु!
✍ रचयिता ©
🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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