मटकी
मटक - मटक
सिर पर धर
पनघट चली
घरनी।
रात
अँधेरी काली
कुंडी खटका रही
मिलन हित
प्रीतम।
पायल
बजी छमाछम
सास जग पड़ी
कैसे होगा
मिलन।
बोले
पिउ -पिउ
पपीहा सावन मास
जलाए जियरा
बैरी।
कोयल
काला कूके
कुंज लता द्रुम
याद सताए
साजन।
सावन
बरसे सरसे
मन वृंदावन पावन
श्याम
न आए।
टपकी
स्वाती बूँद
सीप मुख खोले
सृजित मोती
होता।
चातक
प्यासा - प्यासा
स्वाति बिंदु कण
तृप्त हुआ
तन।
सावन
आया मनभाया
विरहिन निरत प्रतीक्षा
पिया आएँगे
कब ?
बीती
लम्बी अवधि
न पावस आया
अपना क्या
वश?
💐 शुभमस्तु!
✍रचियता ©
🦜 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
मटक - मटक
सिर पर धर
पनघट चली
घरनी।
रात
अँधेरी काली
कुंडी खटका रही
मिलन हित
प्रीतम।
पायल
बजी छमाछम
सास जग पड़ी
कैसे होगा
मिलन।
बोले
पिउ -पिउ
पपीहा सावन मास
जलाए जियरा
बैरी।
कोयल
काला कूके
कुंज लता द्रुम
याद सताए
साजन।
सावन
बरसे सरसे
मन वृंदावन पावन
श्याम
न आए।
टपकी
स्वाती बूँद
सीप मुख खोले
सृजित मोती
होता।
चातक
प्यासा - प्यासा
स्वाति बिंदु कण
तृप्त हुआ
तन।
सावन
आया मनभाया
विरहिन निरत प्रतीक्षा
पिया आएँगे
कब ?
बीती
लम्बी अवधि
न पावस आया
अपना क्या
वश?
💐 शुभमस्तु!
✍रचियता ©
🦜 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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