वेदना की लपट से उर तप रहा है।
इस बहाने नाम प्रभु का जप रहा है।
अपने सुखों की चाह है हर पल उसे,
किसकी किसे परवाह है रिश्ते रिसे,
मुँह से निकलती आह है
तन कंप रहा है
वेदना की लपट से....
बोल तो मीठे सुघर ही बोलता है,
पर हृदय नित हलाहल घोलता है,
दो मुंहां वह नाग है जो डंस रहा है,
वेदना की लपट से......
भेड़िए वन से नगर में आ गए,
आदमी की अस्मिता पर छा गए,
घर में सियासत घुस रही
ख़बर में छप रहा है।
वेदना की लपट से....
आम इंसां बच सके दुश्वार है,
धन बनाने का विषम ज्वर ज्वार है,
साध्य पूरा हो उचित साधन नहीं,
आम ही तो 'शुभम' मर खप रहा है।
वेदना की लपट से....
💐शुभमस्तु!
✍रचयिता©
🍀 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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