शनिवार, 13 जुलाई 2019

छत -पंखा [बालगीत]

पंखा  चलता  सिर  पर मेरे।
लेता   नित्य  करोड़ों   फेरे।।

दिन औ' रात ले रहा चक्कर।
देता नहीं किसी को टक्कर।।
चक्कर उसको कभी न आते।
पंख न तीन  हमें दिख पाते।।
अपनी  ही  सीमा   को  घेरे।
पंखा चलता ....

हवा   हमें    ठंडी  नित देता।
सुखा पसीना सुख भर देता।।
राहत  मिलती  नीचे  जाकर।
चलता रहता सर सर सर सर।
बबलू  ने  सब  साथी    टेरे।
पंखा चलता ....

बिजली गई न हिलता चलता।
अब तो टंगा-टंगा है खलता।।
सोया है  वह   मौन  धारकर।
कुछ तोअब आराम आज कर
दिन भर   संध्या  रात  सवेरे।
पंखा चलता....

व्यजन हाथ का हमें न भाया।
जब से घर छत-पंखा आया।।
सबको उसकी  हवा सुहाती।
दादी को झट निंदिया आती।।
छत - पंखा  के लाभ  घनेरे।
पंखा चलता ....

💐 शुभमस्तु!
✍रचयिता ©
🏵 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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