शुक्रवार, 26 जुलाई 2019

मैं लेखनी हूँ [अतुकान्तिका]

मैं लेखनी हूँ,
मेरा न कोई धर्म,
लिखे मैंने 
महाभारत रामायण,
गीता पुराण,
बाइबिल कुरआन,
निष्पक्ष करती कर्म,
यही है एक
अविचल धर्म।

जो भी लिखो
जैसा लिखो
जितना लिखो
न मुझको शर्म,
निडर निष्पक्ष
लिखती अक्षर स्वच्छ,
मात्र लिखना कर्म
कहो सत्कर्म,
यही है मेरा
पावन धर्म।

वेद और वेदांग
अमर इतिहास
उपनिषद ज्योतिष
साहित्य विशद विज्ञान,
शस्त्र -शास्त्रों से इतर
मम  ज्ञान,
अनवरत  यात्रा
आदि से आज तक।

सबके लिए स्वीकार,
सभी का प्यार,
न थकी
न मानी है
कभी भी हार,
बुद्धजीवी का
सशक्त हथियार,
तोप बंदूक से भी उच्च
मेरा हर वार,
कवि लेखकों की प्राण,
नवरसों की 
बहाती गंगाधार,
अमर उपहार,
करती निरन्तर
मानवों के विशद उपकार।

चूमने के योग्य
होती मैं कभी
बहाती धार
अमृत काव्य की,
आलेख की।

जजों को 
मुझ लेखनी को
तोड़ देने का 
मिला अधिकार,
किसी की प्राण हन्त्री
किसी की मुक्ति
मुझसे लिखी जाती।

बालपन से 
आज तक
मैं मित्र तेरी,
विद्यार्थी की भी
चिर चहेती
पा रही सम्मान
बीते काल कितने
वक़्त के झेले थपेड़े
रूप कितने
बदलते मेरे,
पर कर्म में
नहीं बदलाव कोई।

न हिन्दू हूँ
 न  मुसलमा मैं,
न ईसाई 
न पारसी ही मैं,
सबका मिला है मान,
मानवों की शान,
लेख कविता 
साहित्य विज्ञान
सभी  की जान,
 'शुभम' मैं लेखनी हूँ।

💐 शुभमस्तु!
✍रचयिता ©
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...