झर - झर झरते मेघ दल,
झूमे नीम रसाल।
बरगद से पाकड़ कहे,
अब तो है खुशहाल।।1।
पवन चले सर -सर सुखद,
मिटा देह का ताप।
झर - झर बुँदियाँ झर रहीं,
रहा न दुःख - संताप।।2।
आया सावन झूम के,
घटा उठी घनघोर।
बाग़ - बाग़ मन हो गया,
मोर मचाए शोर।।3।
कोयल कूके बाग़ में,
पपीहा पीता स्वांत।
मोर नाचता झूमकर,
करे मोरनी बात।।4।
पी की याद सता रही,
सुन कोयल के बोल।
डाली पर कू - कू करे,
उर में दे विष घोल।।5।
झींगुर की झनकार है,
घनी अँधेरी रात।
जुगनू से जुगनी करे,
ज्योति साथ ले बात।।6।
प्यासी धरती तृप्त है,
भरे खेत सरि - ताल।
हरे - हरे अँखुए उगे,
नदी रहित शैवाल ।।7।
कच्ची दीवारें सजीं,
मख़मल हरी अबाध।
सीले काठ उगे सघन,
कठफूले निर्बाध।।8।
कुकुरमुत्ते धूसर उठे,
घूरे का उर फोड़।
गगनधूर मकिया वहाँ,
लेती उनसे होड़।।9।
उफनाती सरिता चली,
यौवन में मद चाल।
सागर से होगा मिलन,
रही न वसन सँभाल।।10।
💐शुभमस्तु!
✍रचयिता©
🌱 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें