कहते मुझको दियासलाई।
हुआ अँधेरा ज्योति जलाई।।
भरी एक डिबिया में तीली।
सूखी -सूखी करो न गीली।।
काले सिर में सोती आग।
रगड़ो तीली उठती जाग।।
लगे मसाले से घिसवाई।
कहते मुझको ....
माँ जब जाती सुबह रसोई।
मुझे ढूँढती खोई - खोई।।
गैस जलाई बना नाश्ता।
गर्म पकौड़ी पूड़ी खस्ता।।
गर्म दूध में डाल मलाई।
कहते मुझको ....
हुआ अँधेरा संझा - बाती।
फिर से मेरी बारी आती।।
दिया जला फिर सब्जी बनती।
तीली एक -एक कर जलती।।
दाल गर्म रोटी पकवाई।
कहते मुझको....
जब भी आग जलानी होती।
मेरी सदा ज़रूरत होती।।
अगरबत्तियाँ धूप जलाओ।
हवन करो मंदिर महकाओ।।
ढूंढें बहना भाभी ताई।
कहते मुझको ....
बनी काठ की तीली पतली।
खाकर रगड़ आग ही उगली।
बारह महीने बड़े काम की।
रात दिवस या सुबह शाम की
'शुभम'न बच्चों को पकड़ाई।।
कहते मुझको....
💐शुभमस्तु!
✍रचयिता ©
🔹 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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