शुक्रवार, 12 जुलाई 2019

ग़ज़ल

भूतों    में  इतिहास    है।
वर्तमान  भी   खास  है।।

स्वेद  बहाए  जो  तन  से,
उसका जग-उपहास   है।

जिसनेकाम लिया धी से,
खाता    च्यवनप्राश   है।

घोड़ा  खाता   चने   घने,
गदहा   खड़ा  उदास  है।

जौंक बना जो  परिपोषी,
उसका    सत्यानाश   है।

वशीभूत   हैं   चीता  शेर,
मानव बुद्धि -विकास है।

पकड़ न पाए जो चुहिया,
यह सब  बुद्धि -ह्रास है।।

💐शुभमस्तु!
✍रचयिता ©
🍃 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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