भूतों में इतिहास है।
वर्तमान भी खास है।।
स्वेद बहाए जो तन से,
उसका जग-उपहास है।
जिसनेकाम लिया धी से,
खाता च्यवनप्राश है।
घोड़ा खाता चने घने,
गदहा खड़ा उदास है।
जौंक बना जो परिपोषी,
उसका सत्यानाश है।
वशीभूत हैं चीता शेर,
मानव बुद्धि -विकास है।
पकड़ न पाए जो चुहिया,
यह सब बुद्धि -ह्रास है।।
💐शुभमस्तु!
✍रचयिता ©
🍃 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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