बुधवार, 10 जुलाई 2019

गंध उठी सौंधी -सौंधी [गीत]

गंध उठी सौंधी-सौंधी ,
आँगन     में        मेरे।
घिरे  हैं  घनघोर  मेघ,
बाग़       में     घनेरे।।

बुँदियों  ; के   स्वरताल,
सरगम       सुहाना  है।
दादुरों     की   टर्र - टर्र,
ताल    का  मुहाना  है।।
बिजली    की      कौंध,
काँप-काँप जाए हियरा।
अंकुरित   घास   हरित,
देख    सोचे    जियरा।।
मर्यादा    छोड़    डाले,
बादलों    ने          घेरे।
गंध उठी  सौंधी.....

नदियाँ     कगार    तोड़,
घुस  रही   हैं   बस्ती में।
निकल पड़े   साँप  वहाँ,
भूमि   फोड़  मस्ती  में।।
झींगुर   झनकार    करें,
सन्नाटा      पसरा     है।
नागिन - सी  सेज  डसे,
पिया  तिया  बिसरा है।।
सीलन     लगा      रही ,
घर   भर    के       फेरे।
गन्ध उठी सौंधी...

बागों     में    चुये   आम ,
बालक      बीन    खाते।
जामुन  के    फ़ल   पके,
ढेर   -   से        लगाते।।
झूले   पड़े    बाग़ - बाग़,
कजरी      मल्हार     है।
सावन और   भादों  की,
छिटकी     फ़ुहार     है।
पुरवैया  मतवाली  बहे,
साँझ     से        सवेरे।।
गंध उठी सौंधी....

मेंहदी       कर     रचाये,
नई    दुलहिन   शरमाए।
पेंग  झूले     की  बढ़ाती,
लाल    अधर   मुस्काए।।
पिया   की      प्रतीक्षारत,
मन    की   न     बताए।
कोयल   की   कूक  सुने,
हियरा             तड़पाए।।
जीजाजी  आएँगे    अब,
सखी  बता    कब  तेरे।।
गंध उठी सौंधी....

पीपल  की   शिरा - शिरा ,
थिरकी  है   फ़िरकी - सी।
नीम   और    इमली   की ,
डाल  झुकी गिरती - सी।।
पपीहा  को  स्वांत मिली,
तीतर        वन     डोले।
प्यासी    मैं     वियोगिन,
कैसे -कैसे हिया खोले!!
मन    ही   मन   राधा ने,
'शुभम'  श्याम    टेरे।
गंध उठी सौंधी....

💐 शुभमस्तु!
✍रचयिता ©
☘ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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