किसी व्यथित , बेचैन
और परेशान व्यक्ति को उसकी व्यथा , बेचैनी या परेशानी से बाहर निकालने के लिए कुछ ऐसा उपाय कर देना एक बहुत बड़ी उपलब्धि
है। इसकी कला सबको नहीं आती । जिनको आती है ,वे
इसका भलीभाँति उपयोग
करते हैं।इसके लिए हिंदी में
एक प्रचलित शब्द है:
'आश्वासन '।
'आश्वासन' में एक एक जादुई चमत्कार है कि जिसे यह मिल जाता है , वह बहुत कुछ सीमा तक चिंता- मुक्त हो जाता है। माननीय नेताजी के पास एक ऐसा व्यक्ति आता है , जिसके घर में चोरी हो गई है। तो नेताजी का पहला फार्मूला यही होता है कि चिंता मत करो , चोर शीघ्र ही पकड़े जायेंगे ,एफ. आई .आर. करो। तुरन्त पुलिस जाँच करेगी औऱ माल सहित चोरों को गिरफ़्तार कर जेल भिजवायेगी। तभी थोड़ी देर के बाद चोर भी दौड़ता हुआ आ गया , औऱ उसने अपने को बचाने की गुहार माननीय के दरबार में लगाई। उसे भी आश्वासन मिल गया , चिंता मत कर। कुछ दिन के लिए शहर छोड़कर कहीं बाहर चला जा , तब तक जाँच भी पूरी हो जाएगी औऱ तू बच जाएगा। मेरा नम्बर लेता जा। कभी - कभार करते रहना। निश्चिंत रह। उसे भी मिल गई आश्वासन की संजीवनी बूटी। अब भला क्यों रहे उसकी किस्मत खोटी ! ऊसकी तो चल ही रही है दाल - रोटी। यहाँ न सही , कहीं और सही।
दूसरे शब्दों में कहें तो पिंड छुड़ाने की कला का नाम आश्वासन है। न उसके बुरे , न इसके बुरे। भाई वोट तो हमें 'इसने 'भी दिया औऱ 'उसने ' भी। इसलिए दोनों को बचाना हमारा फ़र्ज़ बनता है। किसी को नाराज़ क्यों करें? सभी अपनी प्रजा ही तो हैं और हम ठहरे प्रजापति और प्रजापालक।
'आश्वासन' की और भी अधिक गहराई में जाएँ तो इसके मूल में ''श्वस" शब्द निहित है , जिसका अर्थ है: हांफना, फूंकना , धकेलना, धौंकना आदि। 'श्वस' के पूर्व 'आ' उपसर्ग जोड़ने पर 'आश्वास' शब्द बनता है।जिसका अभिप्राय साँस लेना। स्वाभाविक है कि जब साँस ली जाएगी तो शुद्ध वायु ऑक्सीजन ही ली जाएगी। जो हमें चुस्त-दुरुस्त ही बनाएगी। इसी प्रकार 'श्वस' के पूर्व :नि' उप- सर्ग जोड़ने पर 'निश्वास' शब्द निष्पन्न होता है , जो साँस छोड़ने या निष्क्रमण के अर्थ का वाचक है। साँस छोड़ने पर दूषित वायु कार्बन डाई ऑक्साइड आदि का ही निष्कासन होगा। इस तरह 'आश्वासन ' खुली साँस लेने का बोधक है। तसल्ली के साथ जीने का भाव लिए हुए उसे प्रोत्साहित करने का सुरक्षित हक प्रदान करना ही आश्वासन है।
अब ये अलग बात है कि पात्र दर पात्र इसकी शक्ति में उत्कर्ष -अपकर्ष होता रहता है। जब एक अधिकारी किसी अधीनस्थ को आश्वस्त करेगा तो उसके अर्थ होंगे :एक चेतावनी , देखो यदि मेरी पोल खोली या असहयोग किया तो समझ लेना कि क्या परिणाम होगा ! इसलिए जैसा मैं कहूँ करते जाओ। अर्थात सौदेबाजी, ब्लैकमेलिंग ।माँ अपने बच्चे को आश्वस्त करेगी तो वह स्नेह , लाड़ , वात्सल्य , प्यार में बदल जायेगा। पति पत्नी को आश्वस्त करेगा तो यह प्रणय रस का सृजन होगा। पुलिस चोर को आश्वस्त करेगी तो एक प्रेरक चेतावनी होगी कि इस बार तो बच गए बच्चू ! होशियारी से काम करो , अन्यथा जेल में जीवन भर सड़ोगे।
'आश्वासन ' एक ऐसा अस्त्र है , जिससे कई प्रकार के साध्य साधे जाते हैं।अपने को सुरक्षित बचा लेने की एक मज़बूत ढाल की संज्ञा यदि दे दी जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। दिल में आशा का संचार करना ही दिलासा है, आश्वासन है। एक ऐसा हथियार , जिसमें हर्रा लगे न फ़िटकरी , रंग चोखा ही आता है। जिसे दिया जाता है ,उसे बिना कुछ मिले ही वह अश्व के आसन पर सवार होकर आकाश -मार्ग से उड़ने का लाभ प्राप्त कर लेता है। 'अश्व के आसन' पर सवार करा देना ही तो असलियत में असली ' आश्वासन ' है। तभी तो कहता हूँ : 'पिंड छुड़ा :आगे बढ़ा'।
पिंड छुड़ाकर जो बढ़ा,
आश्वासन कहलाय।
गुड़-सी मीठी बात से,
अश्वपीठ पर धाय।।
अश्वपीठ पर धाय,
गीत गाए नित उसके।
मन में रहे उमंग,
जुबाँ में रस भर भरके।।
घूमे बदले वेष निज,
चाँद को मुड़वाकर।
माननीय भी मुक्त हुए,
निज पिंड छुड़ाकर।।
💐शुभमस्तु!
✍लेखक ©
🍭 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
'आश्वासन' में एक एक जादुई चमत्कार है कि जिसे यह मिल जाता है , वह बहुत कुछ सीमा तक चिंता- मुक्त हो जाता है। माननीय नेताजी के पास एक ऐसा व्यक्ति आता है , जिसके घर में चोरी हो गई है। तो नेताजी का पहला फार्मूला यही होता है कि चिंता मत करो , चोर शीघ्र ही पकड़े जायेंगे ,एफ. आई .आर. करो। तुरन्त पुलिस जाँच करेगी औऱ माल सहित चोरों को गिरफ़्तार कर जेल भिजवायेगी। तभी थोड़ी देर के बाद चोर भी दौड़ता हुआ आ गया , औऱ उसने अपने को बचाने की गुहार माननीय के दरबार में लगाई। उसे भी आश्वासन मिल गया , चिंता मत कर। कुछ दिन के लिए शहर छोड़कर कहीं बाहर चला जा , तब तक जाँच भी पूरी हो जाएगी औऱ तू बच जाएगा। मेरा नम्बर लेता जा। कभी - कभार करते रहना। निश्चिंत रह। उसे भी मिल गई आश्वासन की संजीवनी बूटी। अब भला क्यों रहे उसकी किस्मत खोटी ! ऊसकी तो चल ही रही है दाल - रोटी। यहाँ न सही , कहीं और सही।
दूसरे शब्दों में कहें तो पिंड छुड़ाने की कला का नाम आश्वासन है। न उसके बुरे , न इसके बुरे। भाई वोट तो हमें 'इसने 'भी दिया औऱ 'उसने ' भी। इसलिए दोनों को बचाना हमारा फ़र्ज़ बनता है। किसी को नाराज़ क्यों करें? सभी अपनी प्रजा ही तो हैं और हम ठहरे प्रजापति और प्रजापालक।
'आश्वासन' की और भी अधिक गहराई में जाएँ तो इसके मूल में ''श्वस" शब्द निहित है , जिसका अर्थ है: हांफना, फूंकना , धकेलना, धौंकना आदि। 'श्वस' के पूर्व 'आ' उपसर्ग जोड़ने पर 'आश्वास' शब्द बनता है।जिसका अभिप्राय साँस लेना। स्वाभाविक है कि जब साँस ली जाएगी तो शुद्ध वायु ऑक्सीजन ही ली जाएगी। जो हमें चुस्त-दुरुस्त ही बनाएगी। इसी प्रकार 'श्वस' के पूर्व :नि' उप- सर्ग जोड़ने पर 'निश्वास' शब्द निष्पन्न होता है , जो साँस छोड़ने या निष्क्रमण के अर्थ का वाचक है। साँस छोड़ने पर दूषित वायु कार्बन डाई ऑक्साइड आदि का ही निष्कासन होगा। इस तरह 'आश्वासन ' खुली साँस लेने का बोधक है। तसल्ली के साथ जीने का भाव लिए हुए उसे प्रोत्साहित करने का सुरक्षित हक प्रदान करना ही आश्वासन है।
अब ये अलग बात है कि पात्र दर पात्र इसकी शक्ति में उत्कर्ष -अपकर्ष होता रहता है। जब एक अधिकारी किसी अधीनस्थ को आश्वस्त करेगा तो उसके अर्थ होंगे :एक चेतावनी , देखो यदि मेरी पोल खोली या असहयोग किया तो समझ लेना कि क्या परिणाम होगा ! इसलिए जैसा मैं कहूँ करते जाओ। अर्थात सौदेबाजी, ब्लैकमेलिंग ।माँ अपने बच्चे को आश्वस्त करेगी तो वह स्नेह , लाड़ , वात्सल्य , प्यार में बदल जायेगा। पति पत्नी को आश्वस्त करेगा तो यह प्रणय रस का सृजन होगा। पुलिस चोर को आश्वस्त करेगी तो एक प्रेरक चेतावनी होगी कि इस बार तो बच गए बच्चू ! होशियारी से काम करो , अन्यथा जेल में जीवन भर सड़ोगे।
'आश्वासन ' एक ऐसा अस्त्र है , जिससे कई प्रकार के साध्य साधे जाते हैं।अपने को सुरक्षित बचा लेने की एक मज़बूत ढाल की संज्ञा यदि दे दी जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। दिल में आशा का संचार करना ही दिलासा है, आश्वासन है। एक ऐसा हथियार , जिसमें हर्रा लगे न फ़िटकरी , रंग चोखा ही आता है। जिसे दिया जाता है ,उसे बिना कुछ मिले ही वह अश्व के आसन पर सवार होकर आकाश -मार्ग से उड़ने का लाभ प्राप्त कर लेता है। 'अश्व के आसन' पर सवार करा देना ही तो असलियत में असली ' आश्वासन ' है। तभी तो कहता हूँ : 'पिंड छुड़ा :आगे बढ़ा'।
पिंड छुड़ाकर जो बढ़ा,
आश्वासन कहलाय।
गुड़-सी मीठी बात से,
अश्वपीठ पर धाय।।
अश्वपीठ पर धाय,
गीत गाए नित उसके।
मन में रहे उमंग,
जुबाँ में रस भर भरके।।
घूमे बदले वेष निज,
चाँद को मुड़वाकर।
माननीय भी मुक्त हुए,
निज पिंड छुड़ाकर।।
💐शुभमस्तु!
✍लेखक ©
🍭 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
आपके बेवसाईट पर दी गई जानकारी बहुत ही महत्व पूर्ण एवं उपयोगी हैं
जवाब देंहटाएंPriyanka Tiwari
ravishankar4001@gmail.com
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