शुक्रवार, 12 जुलाई 2019

मुखिया कैसा चाहिए [दोहा]

नव     दरवाजे    देह  के,
खान   -  पान   को  एक।
सब   द्वारों    से  खा  रहे,
मुखिया रहित विवेक।।1।।

'मुखिया मुख सौ चाहिए,'
नौ    से   चले   न काम।
बाबा  तुलसी   कह  गए,
सौ  मुख से आराम।।2।।

ग्रहण   विसर्जन  के लिए,
अलग - अलग  नव  द्वार।
एक ग्रहण आनन  सकल,
शेष    अष्ट   आकार।।3।।

देश      हमारी    देह   है,
मुखिया     है    आज़ाद।
सौ  मुख  से   आहार ले,
गंगाजल   में  गाद।।4।।

आँख कान मुख नासिका,
तजकर     अपने    काम।
और   कर्म   में रत  सभी,
होगी    देह    तमाम।।5।।

सहस   करों  से  ले  रहा,
सूरज  निज   कर  रोज़।
धरा  नहीं   यह  जानती,
होता जल का भोज।।6।।

मुखिया    होना   चाहिए,
जैसे    नभ    में     भान।
दूर  खड़ा   कर   ले  रहा ,
नहीं  धरा  को ज्ञान।।7।।

नहिं    रोई   धरती  कभी,
रोया     नहिं     आकाश।
सूरज    से   जीते   सभी,
चमके  धवल प्रकाश।।8।।

जग  का  मुखिया  सूर्य है,
एक        सौर -  परिवार।
नवग्रह वसुधा नखत सब,
सदा  सौख्य  - संचार।।9।।

सीखें      मुखिया   सूर्य से,
शोषित     करें    न    देश।
पोषण  उनका   लक्ष्य  हो,
सरल 'शुभम' संदेश।।10।

💐शुभमस्तु!
✍रचयिता ©
🍀 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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