सोमवार, 15 जुलाई 2019

बात बात में बात [कुण्डलिया ]

बात   बात  में  बात   है,
बात     बात   में    बात।
बात  निकलती   बात से,
ज्यों   केला   के   पात।।
ज्यों   केला    के    पात,
लपेटे    साड़ी  तन  पर।
रहस्य     भरी    सौगात,
प्रबल  आशा है   सुंदर।।
परत   हटाते  ही  मिली,
जिज्ञासा   को      मात।
सोचा   जो  माटी मिला,
'शुभम'शून्य सब बात।।1●

बातें    करना    अलग है,
बात       बनाना     और।
बातें       ऐसी      चाहिए,
ज्यों    रसाल     में   बौर।।
ज्यों     रसाल    में    बौर,
मधुर   फ़ल द्रुम पर आते।
मौसम      जेठ     अषाढ़,
स्वाद  ले  ले    सब  खाते।।
बातें      बनाना    चिकनी ,
मीठी          देता     घातें।
ज़्यादा गढ़ना 'शुभम'बात,
झूठी          वे      बातें।।2●

बातों    के     छप्पर   छए,
तृण भर    मिले    न छाँव।
तन  जलता  मन   सीझता,
झुलसे       दोनों     पाँव।।
झुलसे       दोनों       पाँव,
चले   ज्यों - ज्यों   पुरवाई।
आगे         ठण्डी       लगे ,
पीठ     पीछे       गरमाई।।
घुमाफिरा  जब  चलती है,
मत       रमना         रातों।
मत सुनना लुब्धक शुभम,
न   आना   इन    बातों।।3●

बातूनी      की     बात   में,
सौ    में      सत्तर      झूठ।
झट   से   उसको   चाहिए,
पड़े     नाक    पर    मूठ।।
पड़े    नाक     पर     मूठ,
भले    मानुष   को ठगता।
होता              भंडाफोड़ ,
उठा निज दुम को भगता।।
ले    लेगा   सन्यास    वह,
लगाकर     वन  -    धूनी।
ठग - विद्या    में      निपुण ,
'शुभम'    होते   बातूनी।।4●

रसना   से    शरबत   रिसे,
वे        सब      धोखेबाज़।
मार    झपट्टा    ले     उड़े,
गौरैया       खग      बाज।।
गौरैया       खग       बाज,
बधिक   नर -  नारी   सारे।
फँसा    जाल     में   अन्न -
कणों   से   जन को मारे।।
जान बचानी  'गर 'शुभम',
न    जाले    में    फँसना।
सावधान     रह       सदा,
कतरनी   जो   रसना।।5●

💐शुभमस्तु!
✍रचयिता ©
डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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