काले - काले बादल आए।
छलनी में पानी भर लाए।।
महीना है आषाढ़ का प्यारा।
गरमी करने लगी किनारा।।
नभ में बादल उमड़ रहे हैं।
संग हवा के घुमड़ रहे हैं।।
भूरे - गोरे बादल छाए।
काले-काले बादल .....
गरज - गरज कर हमें डराते।
ठंडी बूँदें घन बरसाते।।
बिजली झट चमके सुनहरी।
डर से छूटे देह फुरहरी।।
कड़क रही है बिना बताए।
काले -काले बादल....
भरे ताल सब नाले - नाली।
छत से गिरती तेज पनाली।।
गली सड़क नदियाँ बन जातीं
तिरपालें आँगन तन जातीं।।
नंगे हो हम खूब नहाए।
काले -काले बादल....
बाग - बगीचे खेत भर गए।
सूखे से सब कृषक तर गए।।
हर्षित सब किसान नर-नारी।
इंद्रदेव ने विपदा टारी।।
ले हल - बैल खेत को धाए।
काले -काले बादल......
वीरबहूटी रूठ गई है।
केंचुआ गिजाई भी न हुई है।।
दीपक पर उड़ रहे पतंगे।
चींटे निकल मचाते दंगे।।
परवाने के पर उग आए।
काले -काले बादल....
भैंसें - गायें रेंक रही हैं।
अजा-भेड़ सिर बचा रही हैं।।
पंक्षी खुश पर भीगे सारे।
कब से थे प्यासे बेचारे।।
'शुभम' मोर पिक शोर मचाए।
काले -काले बादल....
💐शुभमस्तु!
✍रचयिता ©
🌿 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'
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