पावस है,
नहिं थ्यावस है,
पावस में
शुभ सावन है,
सावन अति
मनभावन है,
सावन में नित
रिमझिम है,
रिमझिम में है
झर - झर फ़ुहार।
करती कामिनी
पिया गुहार,
आग लगाती देह
गेह में
बुँदियाँ सजी फ़ुहार।
बैठी खिड़की
खोल द्वार,
बहुत सताए
मारक मार,
बुँदियाँ झरतीं
विरल फ़ुहार।
तन की मन की
एक पुकार,
सकी न तन -मन
पल भर
तनिक सँभार,
नहीं मानता
मन भी हार,
खोले बैठी
बंद किवार,
बाहर झरतीं
मंद फ़ुहार।
अंकुर हरे -हरे
हरिआये,
कलियों में
सुगंध भर लाये,
खिले फ़ूल
बगिया महकाए,
मन की मन ही
रह -रह जाये,
झोंटे झूले के
इतराए,
भीगे चोली चुनरी
हाए !!
रुकती नहीं फ़ुहार।
लुएँ न भाएँ,
शीत हवाएँ,
रेत झकोरे,
सावन आ रे!
जल बरसा रे!!
उमड़ -घुमड़
बादल आ जा रे!
छन -छन बरसें,
तन -मन हरसें ,
नन्हीं -नन्हीं
ठंडी पावन
बरसो मेघा
सजल फ़ुहार।
यही है
नर -नारी की
जल थलचर की
जड़ -चेतन की,
अंतर प्रकट गुहार,
झरे सावन में
शीतल सुघर फ़ुहार।।
💐शुभमस्तु!
✍रचयिता ©
🌈 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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