गुरुवार, 25 जुलाई 2019

यौवन [दोहा]

यौवन  पुष्प  -  पराग  है,
रूप    रंग     रस    राग।
फ़ूल   खिलाता   नेह  के,
अपना - अपना  भाग।।1।

उफ़न - उफ़न सरिता बहे,
यौवन   की   दिन -  रात।
ज्यों  पावस की सरि चढ़े,
जब  आए    बरसात।।2।

तोड़    कगारें   बह  चली,
यौवन   -  सरि     बेहाल।
खेत   बाग़   वन    डूबते,
हरी फ़सल का काल।।3।

यौवन  खिलता  फ़ूल है,
झड़ना   भी   अनिवार्य।
रूप   रंग   मरते   सभी,
फ़ल ही  अच्छा  कार्य।।4।

मत    गुमान  में   भूलना,
यौवन     पीला       पात।
इक दिन झर गिर जायगा,
दिखे   अँधेरी     रात।।5।

शक्ति मिली तब बुद्धि कम,
जीवन       का    सिद्धांत।
यौवन     चुकता     वृद्धता,
करती   जीवन  -  अंत।।6।

अनुभव   पाया  ज्ञान का,
नहीं     इन्द्रियाँ      साथ।
गत   यौवन  वार्धक्य  में,
 निर्बल   दोनों  हाथ।।7।

बालापन    में      खेलता,
यौवन      में     रस - रंग।
चार   दिनों   की   चाँदनी,
देख   रह  गया   दंग।।8।

कलियाँ  फूटीं अंग - अँग,
महके       फ़ूल    हज़ार।
बौराया    यौवन     मधुर,
छाने     लगी   बहार।।9।

यौवन  में  साजन  बिना ,
नहीं    महकते      फ़ूल।
बाढ़  नदी   की  तोड़ती,
सुदृढ़  कगारें  कूल।।10।

अंगों      में    अँगड़ाइयाँ,
मन    में    उठे     हिलोर।
सावन  में   कामिनि कहे,
मत  तड़पाओ   और।।11।

आनन  से   आहें  निकल ,
करें    पिया     की  चाह।
यौवन -  घाटी  में   उतर,
नाप नेह - रस  थाह।।12।

क्षण - क्षण यौवन बीतता,
रीता     तन - घट    मोर।
चातक  चाहे  स्वांत-जल,
पिय  की उठे हिलोर।।13।

यौवन  पर    पहरा  नहीं ,
बिना नयन  बिन   कान।
उसे   प्रेमरस      चाहिए,
नहीं  वेद का ज्ञान।।14।

प्यासी    धरती    माँगती,
झमझम     बरसे     मेह।
यौवन अँखुआये 'शुभम',
मिले  देह  को  नेह।।15।

💐 शुभमस्तु !
✍ रचयिता ©
🌱 डॉ. भगवत स्वरूप' शुभम'

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