बुधवार, 10 जुलाई 2019

चौमासा- चुहल [कुण्डलिया]

बादल  रिमझिम   बरसते,
झर -  झर   झरे    फ़ुहार।
कोयल  कूके    बाग़    में,
करते      मोर      गुहार।।
करते        मोर      गुहार,
छिपी  बैठी पिड़कुलिया।
छोड़   नीड़   की   शरण,
छान    छिपती   गौरेया।।
उमड़ रहे  नीले अम्बर में,
लेकर               दलबल ।
धूसर     श्यामल      श्वेत,
रंग के पावस - बादल।।1।।

बादल   छाए    गगन   में,
फूली      वसुधा  -    देह।
हरियाने     आशा    लगी,
बरसेगा    अब       मेह।।
बरसेगा     अब        मेह,
प्यास   बुझ   जाए   मेरी।
पहनूँ        साड़ी      हरी,
नहीं   होगी    अब  देरी।।
पहन      साँवले     वस्त्र,
उमड़ते  ज्यों  सेना -दल।
गरज -  गरज   कर  कहे,
अंक भरने को बादल।।2।।

चौमासा    की    रात   है,
महिना    लगा    अषाढ़।
विरह  सतावे   विरहिणी,
पिय   की   याद  प्रगाढ़।।
पिय  की    याद   प्रगाढ़,
झरें  जब   झर -झर  बूँदें।
हृदय -    कंदरा     बीच ,
चपल  वानर -  से  कूदें।।
पुरवाई      जब      चले,
टूटती  मन   की आशा।
कूकें     बगिया      मोर,
फ़टे  छाती  चौमासा।।3।।।

सावन   में    शृंगार    कर,
शुचि  सज्जित   ब्रजनारि।
तीज    हिंडोले   पड़  गए ,
झूलें      झोटा       मारि।।
झूलें      झोटा         मारि,
भिगोती     अंग     फ़ुहारें।
बहते        आँसू      नयन,
कौन   अब    झोटा  मारें।।
करूँ      प्रतीक्षा     नित्य,
मिलेंगे  कब    मनभावन।
जले     विरह     में    देह,
बरसता झर-झर सावन।।4।।

भादों  महिना  तम   भरी-
रात       बरसता      मेह।
सेज  डसे   प्रीतम   बिना,
तनिक   न   भावे    गेह।।
तनिक    न   भावे    गेह,
न  दिखते    रजनी  तारे ।
बातें     किससे      करूँ,
विरह   ने     डेरे    डारे।।
लेता      पवन     झकोर,
न    आए    मेरे    माधों।
थर -  थर   काँपे    हिया,
झकोरे भरता भादों।।5।।

क्वार    महीना  जब लगा,
बढ़ा    काम     का   जोर।
बाट   जोहती     विरहिणी,
भावे    निशा     न    भोर।।
भावे     निशा     न   भोर,
सेज  डसती  नागिन - सी।
भूले     घर       की    राह,
चैन   की    बजती   वंशी।।
कौन       रँगीली      नारि,
'शुभम' अब  जात सही ना।
बढ़ा     शीत      का    वेग,
लग  गया क्वार महीना।।6।।

💐शुभमस्तु!
✍रचयिता ©
🍀 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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