बादल रिमझिम बरसते,
झर - झर झरे फ़ुहार।
कोयल कूके बाग़ में,
करते मोर गुहार।।
करते मोर गुहार,
छिपी बैठी पिड़कुलिया।
छोड़ नीड़ की शरण,
छान छिपती गौरेया।।
उमड़ रहे नीले अम्बर में,
लेकर दलबल ।
धूसर श्यामल श्वेत,
रंग के पावस - बादल।।1।।
बादल छाए गगन में,
फूली वसुधा - देह।
हरियाने आशा लगी,
बरसेगा अब मेह।।
बरसेगा अब मेह,
प्यास बुझ जाए मेरी।
पहनूँ साड़ी हरी,
नहीं होगी अब देरी।।
पहन साँवले वस्त्र,
उमड़ते ज्यों सेना -दल।
गरज - गरज कर कहे,
अंक भरने को बादल।।2।।
चौमासा की रात है,
महिना लगा अषाढ़।
विरह सतावे विरहिणी,
पिय की याद प्रगाढ़।।
पिय की याद प्रगाढ़,
झरें जब झर -झर बूँदें।
हृदय - कंदरा बीच ,
चपल वानर - से कूदें।।
पुरवाई जब चले,
टूटती मन की आशा।
कूकें बगिया मोर,
फ़टे छाती चौमासा।।3।।।
सावन में शृंगार कर,
शुचि सज्जित ब्रजनारि।
तीज हिंडोले पड़ गए ,
झूलें झोटा मारि।।
झूलें झोटा मारि,
भिगोती अंग फ़ुहारें।
बहते आँसू नयन,
कौन अब झोटा मारें।।
करूँ प्रतीक्षा नित्य,
मिलेंगे कब मनभावन।
जले विरह में देह,
बरसता झर-झर सावन।।4।।
भादों महिना तम भरी-
रात बरसता मेह।
सेज डसे प्रीतम बिना,
तनिक न भावे गेह।।
तनिक न भावे गेह,
न दिखते रजनी तारे ।
बातें किससे करूँ,
विरह ने डेरे डारे।।
लेता पवन झकोर,
न आए मेरे माधों।
थर - थर काँपे हिया,
झकोरे भरता भादों।।5।।
क्वार महीना जब लगा,
बढ़ा काम का जोर।
बाट जोहती विरहिणी,
भावे निशा न भोर।।
भावे निशा न भोर,
सेज डसती नागिन - सी।
भूले घर की राह,
चैन की बजती वंशी।।
कौन रँगीली नारि,
'शुभम' अब जात सही ना।
बढ़ा शीत का वेग,
लग गया क्वार महीना।।6।।
💐शुभमस्तु!
✍रचयिता ©
🍀 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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