धरती प्यासी मीन -सी,
रिमझिम बरसो मेह।
आँसू सूखे नयन के,
चाह रही है नेह।।
चाह रही है नेह,
फुहारें शीतल लाओ।
सूरज दादा को थोड़ा-
सा तुम समझाओ।।
जीव - जंतु सब दुःखी,
नीर बिन चिड़ियाँ मरती।
हिलते पल्लव नहीं,
मूक रोती है धरती।।1।।
धरती का फटता हिया,
सूखी फ़टी दरार।
लू के थप्पड़ - से लगें,
हवा करे तक़रार।।
हवा करे तक़रार,
चले जोरों की आँधी।
टूटे खम्भे पेड़,
विकलता रहे न बाँधी।।
वातचक्र की साँठ -
गाँठ से जनता मरती।
छिना मनुज का चैन,
तवे-सी तपती धरती।।2।।
धरती माँ के धीर को,
करता 'शुभम ' प्रणाम।
बिना आह सहती रहे,
धर के धीर ललाम।।
धर के धीर ललाम,
धारती पहले गोदी।
जन्मकाल में ममतामृत ,
सुख सुषमा बो दी।।
स्नेह लाड़ की साँसें,
शिशु के उर में भरती।
माँ का प्रिय दायित्व,
निभाती माता धरती।।3।।
धरती प्रीतम मेघ से,
करती मौन गुहार।
आकर दो प्रिय सांत्वना,
छींटो शीत फ़ुहार।
छींटो शीत फ़ुहार,
प्यास तन -मन की हर लो।
फूटें अंकुर हरित,
नीर वर्षा जग कर लो।।
सावन भादों झड़ी,
'शुभम' नवजीवन भरती।
मोर कर रहे शोर,
हर्षमय फूली धरती।।4।।
धरती जीवन धारती,
अन्न दूध फ़ल फ़ूल।
जीव - जंतु नित पालती,
कभी न माँ को भूल।।
कभी न माँ को भूल,
स्वर्ण हीरा नग मोती।
औषधि के भांडार,
'शुभम' द्रुम बेलें होती।।
खोदे गहरे गर्त,
न रोती आहें भरती।
काँप उठे इंसान ,
करवटें जब ले धरती।।5।।
💐शुभमस्तु!
✍रचयिता ©
🌈 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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